हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Tuesday, February 23, 2010

स्मारक रोमांस(विशेष श्रंखला) - पार्ट ४

(इसे पढने से पहले इसी ब्लॉग पर प्रकाशित रोमांस पार्ट- १,२,३, पढ़ें)
सुन्दर दिखना किसकी चाहत नहीं होती, अब स्मारक के ब्यूटी आयोजनों का चिट्ठा भी सुन लीजिये। रात की कक्षा खत्म हुई नहीं कि अपने शरीर पर भान्त-भान्त के लेप पोतने का सिलसिला शुरू हो जाता था। कोई महाशय चेहरे पर मुल्तानी मिट्टी पोत कर खुद कों उजला करना चाहते थे, तो कोई नीम की छाल घिसकर अपने पिम्पल छुपाना चाहते थे। कोई बालों कों काला करने के लिए मेहंदी डाले मिल जाएगा, तो कोई बंधू गरम पानी की भांप से चेहरे के दाग दूर करते पाए जायेंगे। सबसे बड़ी बात ये थी कि न्यायशास्त्र कि किताबें पढने वाले ये शास्त्री सौंदर्य प्रसाधनों का प्रयोग बिना परीक्षा के करते थे। एक को करते देखा नहीं कि सब उसी राह पर चल पढ़ते थे। अब बताइए कि क्या कभी तमिल की ब्लैक ब्यूटी हिमाचल के गुलाबी गालों में परिवर्तित हो सकती है।

लेकिन किसी को भी इसका विचार कहाँ? किसी भी नए वस्त्र के उद्घाटन के लिए स्मारक में एक रैम्प की व्यवस्था भी थी और वो था हमारा भोजनालय...जिस भी दिन कोई नए वस्त्र से सुसज्जित होकर भोजनालय में प्रवेश करता तो कुछ इस तरह से खाने के लिए आता की सारे उपस्थित लोगों की निगाहें उसकी और घूम जाये। और उस दिन उस बन्दे की चाल में एक अकड़ महसूस की जा सकती है। वस्त्र धारित पुरुष मंदिर में भगवान के दर्शन भी इस तरह से करता है कि पेंट पर सलवटें न पढ़ जाएँ।

किसी भी product को खरीदने के लिए अलग-अलग दुकानें नहीं होती थी यहाँ भी भेड़चाल का अनुसरण किया जाता। किसी एक ने कहा कि फलां जगह अच्छे कपड़े सिलते हैं तो सभी को बस उस जगह से ही आँख मूंदकर अपना काम करवाने कि आदत होती। ज्यादा ही हुआ तो अपने किसी सिनियर के साथ खरीदी करने निकल जाया करते, ऐसी दशा में सीनियर अपनी इज्ज़त बढ़ी हुई महसूस करते थे...और दुकानदार से कुछ इस लहजे में बात करते की मानो वे इस product के ब्रांड एम्बेसटर हों। ये सब अपने जूनियरों का दिल जीतने का जतन होता था। एक बात तो मानना पड़ेगी कि जितना जूनियर अपने सीनियर को इम्प्रेस करना चाहते थे उतना ही सीनियर भी अपने को पसंदीदा सीनियर बनाने पर आमदा हुआ करते थे।

हर चीज का अपना रहस्य, अपना रोमांच था। दूर से देखने पर सब बड़ा हास्यास्पद लगता था। दरअसल ये एक सार्वभौमिक नियम है कि इन्सान की जिंदगी दूरसे देखने पर कॉमेडी और पास से देखने पर ट्रेजडी है। मेरा सारा मनोरंजक वर्णन दूर से देखी गयी दृष्टि है, पास से देखने पर शायद दर्द नज़र आये। स्मारक में रहते हुए चिंता न रहती हो ऐसी बात नहीं है लेकिन इसके बावजूद वहां एक अनजाना सा आत्म-विश्वास हमेशा साथ होता है जो शायद बाद में ख़त्म हो जाता है। वो आत्मविश्वास कहाँ से आता है ये पता नहीं। शायद जिनवाणी के समागम का प्रताप था। इस स्थिति पर रंग दे बसंती फिल्म का एक सीन याद आता है "स्मारक के गेट के इस तरफ हम जिंदगी को नचाते हैं और गेट के उस तरफ जिंदगी हमें नचाती है "। वहां रहकर वास्तव में हिन्दुस्तानी होने का अहसास होता है, जहाँ की भाषाएँ अलग-२ थी, प्रदेश अलग थे, आर्थिक स्थितियां अलग थी फिर भी कुछ तो एक समान सा था, कुछ अनजानी सी चीज एक बराबर थी-पता नहीं क्या। सब, एक दूसरे से लड़ते थे फिर भी सब एक दूसरे के दोस्त थे। एक वाक्य याद आता है "लोग गलत कहते हैं की दोस्ती बराबर वालों से की जाती है, दोस्ती वो चीज है जो सबको बराबर कर देती है"।

बहरहाल, रोमांस थोडा गंभीर हो गया, इसे वापस अपने मूड पर लेके आयेंगे बस आप पढ़ते रहिये....रोमांस जारी है,प्रतिक्रिया ज़रूरी है.........

6 comments:

abhishek said...

is bar maja kam aya per dil per asar story padne ke bad jyada pada per bhi ho story badi bindas h.

Tanmay jain said...

smarak hamare dil me basta hai........samarak se lagatar update rakhane ke liye dhanyabad.........please jari rakhe......

Tanmay jain said...
This comment has been removed by a blog administrator.
Sarvagya Bharill said...

great keep it up

Unknown said...

jindgi ko page par utarne ke liye THANKSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSSS

Unknown said...

ankur ji !
u r great.i knew before this that u r good poet but now ......i think u r great writer.
really nice