हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Tuesday, May 25, 2021

यौम ए अज़्म (संकल्प दिवस) पर ‘दादा’ (डॉ हुकुमचंद जी भारिल्ल) के लिये पेश ए खिदमत इक मुख़्तसर नज़्म



बड़ी पाकीजगी से मुसलसल जो सफ़र गुज़रा।

बयां हो अज़्म कैसें यूं, मिला जो आपसे दादा।।


कलम की जान हो तुम, और तुम फख्र ए सहाफत भी।

हर इक तहरीर पे जिनकी फ़साहत नाज़ है करती।


हर इक लब रहे जारी तुम ऐसा साज़ हो दादा।

ख़िलाफ़-ए-मालिकाना ज़हन, सख़्त आवाज़ हो दादा।।


जमाने का मजाजी इश्क़, छुड़ाया अपने बयानों से।

हकीकी इश्क़ का जो इल्म, दे डाला बखानों से।।


सबक फ़ितरी के दे डाले, मुसलसल-हाल समझाया।

मसलक-ए-फ़िक्र-ओ-'अमल', भी तुमने ही बतलाया।।


खुदी को जान खुदा होने के हो इल्म में माहिर। 

हो टोडरमल की धारा के, हुकुमचंद नाम जगजाहिर।।


कभी अल्फ़ाज़ का जामा, दिया अंदाज़-ए-अक़ीदत को।

है बदला फितरत ए इंसां, और मज़ाजी उल्फत को।।


थी मजहब के फ़रेबों में, दबी ये रूह अरसे से। 

उसे हर आमो-खास इंसा को किया मुमकिन बड़ा तुमने।।


गुरु ‘कहान’ ने जहाँ छोड़ा, बढ़ाई है सिफ़ारत ये।

दिये फरमान मुनियों के, मु’अल्लिम’ बन नज़ाकत से।।


तुम्हारी यौम ए पैदाइश पे, है ये अज़्म हम सबका।

करेंगे बस वही ताउम्र, है राह-ए-नजात जो बंधन का।।


~ अंकुर जैन, भोपाल


शब्दार्थ- मुसलसल- लगातार, मुख्तसर- संक्षिप्त, सहाफत- विशिष्ट प्रकार के लेखक, अज़्म- संकल्प, पाकीजगी- शुद्धत्ता, तहरीर- लेखन, फसाहत- स्वाभाविक लेखकीय प्रवाह, खिलाफ ए मालिकाना जहन- परकर्तत्वबुद्धि, मजाजी इश्क- भौतिक प्रेम, हकीकी इश्क- आध्यात्मिक प्रेम, इल्म- ज्ञान, फितरी-सहजता, मुसलसल हाल- क्रमबद्धपर्याय, मसलक ए फिक्र ओ अमल- जीवन जीने की कला, अकीदत- श्रद्धा, मजाजी उल्फत- विषयों की इच्छा, सिफारत-मिशन, मु’अल्लिम’- धर्मज्ञान देने वाला, यौम ए पैदाइश- जन्मदिन, राह ए नजात- मुक्ति का मार्ग