हमारा स्मारक : एक परिचय
श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं।
विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें।
हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015
Saturday, March 27, 2010
यादों की जुगाली
अक्सर लोगों के सेल फोन में एक मैसेज पड़ने को मिलता है.."वादे और यादें में क्या फर्क है, जिसका उत्तर है-वादे इन्सान तोड़ते हैं, और यादें इन्सान को तोड़ती हैं।" क्या वास्तव में यादें इतनी निर्मम होती हैं जबकि इन्सान उन्हें रंगीन कहता है, उनके सहारे जिंदगी गुज़ारने की बात करता है। खैर.....
दरअसल इन्सान के नन्हे से दिल में स्थित स्मृतियों का समंदर ही उसे एक सामाजिक प्राणी बनाता है जिसके बल पर वह ताउम्र आचार-विचार और व्यवहार करता है। यादों का विसर्जन पागलपन की शुरुआत है। यादों का कमजोर होना इन्सान का कमजोर होना है। फिर कैसे उन्हें निर्मम कहा जा सकता है, जालिम कहा जा सकता है।
इन्सान का टूटना उसकी अपनी वैचारिक विसंगति है, उसमें यादों को दोष नहीं दिया जा सकता। अतीत की कड़वाहट का असर यादों पर नहीं पड़ता, इसलिए शायद कहा जाता है कि "अतीत चाहे कितना भी कड़वा क्यों न हो उसकी यादें हमेशा मीठी होती है। दरअसल यादें न तो मीठी होती है नाही कड़वी, यादें तो बस यादें होती है। इन्सान अपनी तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार उन पर अच्छा या बुरा होने का चोगा उड़ा देता है।
यादों का जीवन में अमूल्य स्थान है, यादें ही मनुष्य को कुदरत कि असीम संरचनाओं से अलग करती हैं। इन यादों पर ही गीत है, संगीत है, साहित्य है, संस्कृति है, धर्म है सारा समाज है। हिंदी फिल्मों में तो यादें समरूपता से नजर आने वाला विषय है। कालिदास के प्रसिद्ध नाटक "अभिज्ञान शाकुंतलम" का क्लाइमेक्स ही यादों के विस्मरण पर केन्द्रित है। यादों में इश्क है, नफरत है, दोस्ती है, दर्द है, ख़ुशी है, हसरत है और सबसे बड़ी चीज यादों में यादें हैं।
इन यादों के सहारे ही आदमी तन्हाइयों में भी तन्हा नहीं होता, तो कभी-कभी भीड़ में भी तन्हा हो जाता है। नमस्ते लन्दन फिल्म के एक गीत में जावेद अख्तर ने लिखा है-"कहने को साथ अपने इक दुनिया चलती है पर चुपके इस दिल में तन्हाई पलती है...बस याद साथ है तेरी याद साथ है"। इस दुनिया से इन्सान चला जाता है पर कम्बख़त यादें नहीं जाती। लेकिन यादों का स्थायित्व भी सदा के लिए नहीं है दिल में बसने वाली यादें उसके रुकने के साथ ही ख़त्म हो जाती है।
दरअसल इन्सान यादों से दुखी नहीं होता, नाही उनसे टूटता है उसके दुःख का कारण यादों में छुपी हसरतों कि पूर्ति न हो पाना है या यादों के माध्यम से सफलता की जुगाली है। सफल या सितारा व्यक्ति के सफल दिनों में गूंजा तारीफ का स्वर गैरसितारा दिनों में भी सुनाई देता है। सितारा दिनों में बजी तालियों की गडगडाहट, यादों में आज भी कायम रहती है। यादों की जुगाली में आज को न जी पाना दुःख का कारण है। इन्सान को यादों का नहीं हसरतों का सैलाब तोड़ता है।
अतीत की यादों का हथोडा हम आज पर मारकर अपना भविष्य ज़ख्मी करते हैं। अतीत से हमें सिर्फ यादें मिलती हैं और यादों का कोई भविष्य नहीं होता। जिंदगी आज में जीने का नाम है, यादों की जुगाली से इसे गन्दा करना समझदारी का काम नहीं है।
दिल से यादों को नहीं अपनी इच्छाओं को समेटना होगा। मरकर भी किसी की यादों में जीने की हसरत मिटाना होगी, यश का लोभ समुद्र में विसर्जित करना होगा। इस झूटे संसार का राग भी झुटा है, इन्सान के मरने के बाद उसे यादों में भी जगह नहीं मिलती। आकाश के टूटते तारों से आकाश को कोई फर्क नहीं पड़ता, ज़मीन पर हमारी भी वही स्थिति है। कभी-कभी फिल्म के इक गीत में कुछ बोल इस तरह हैं-"क्यों कोई मुझको याद करे..क्यों कोई मुझको याद करे, मशरूफ ज़माना मेरे लिए क्यों वक़्त अपना बर्बाद करे...मै पल दो पल का शायर हूँ"
यादों की क्या अहमियत है, कितनी जरुरत है, निर्णय आप स्वयं करे, फैसला आप सब पर है। सबके फैसले अलग-अलग आयेंगे इससे मुझे आश्चर्य नहीं होगा। यादों की अहमियत सबके लिए जुदा-जुदा है। प्रतिक्रिया देकर यादों के विषय में ज़रूर बताएं........
अंकुर'अंश'
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1 comment:
nice job YADON KI JUGALI interisting
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