हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Saturday, December 5, 2015

शास्त्रियों के लिये करियर का दुष्चक्र

भविष्य की बेहतरी की तलाश में निकले हर युवा के सामने जीवन की मूलभूत समस्या या कहें की चिंताओं का तीव्रतम आग्रह यदि किसी ओर है तो वो है एक उपयुक्त करियर की चुनाव। इस समस्या से देश की पैंसठ फीसदी युवा आबादी की तरह हर शास्त्री भी प्रायः ग्रसित नज़र आता है। यद्यपि उसके पास खुद को चिंताओं के भंवर में से निकालने वाली तत्वज्ञान की औषधि विद्यमान है किंतु फिर भी यथोक्त पर्याय के स्वभाव अनुसार खुद को इस समस्या से पूरी तरह से निकाल पाना संभव नहीं है।
      अतएव अब वक्त आ गया है कि शास्त्रियों की लगातार बढ़ती आबादी के समक्ष उत्पन्न इस समस्या पर मंथन किया जाये और दिग्भ्रमित होते जिनवाणी माँ के सपूतों का उपयुक्त दिशा निर्देश किया जाये। जिससे वे अपनी-अपनी योग्यता अनुसार एक उत्तम आजीविका का साधन प्राप्त करने के साथ ही जिनवाणी के प्रसार और तत्वविचार की परंपार से जुड़े रह सकें। इस समस्या का समाधान देने के लिये प्रस्तुत ये लेख मेरा इस दिशा में एक अदना सा प्रयास है किंतु प्रसंगानुसार और मेरे गुरु पंडित प्रवीण शास्त्री के आग्रह पर इस लेख को लिखने के लिये मैं यहाँ उपस्थित हुआ हूं किंतु इस समस्या पर गहन और व्यापक मंथन करने के लिये बड़े प्रबुद्ध वर्ग को आगे आना पड़ेगा।
      बहरहाल, सर्वप्रथम तो इस बात की पकड़ हर एक शास्त्री के दिलो-दिमाग पर मजबूत करना अनिवार्य है कि ये चालीस-पचास साल का भविष्य ही हमारा आने वाला कल नहीं है बल्कि वो रहिये अनंतानंत काल वाले दूरगामी भविष्य के लिये हमें प्रयास करना है। और उस लक्ष्य को केन्द्र में रखकर ही आजीविका के दूसरे यथोक्त प्रयास किये जाने चाहिये।
      एक बात को समझना सर्वाधिक जरुरी है कि किसी भी चीज़ का मूल्य उसकी उपयोगिता और उपलब्धता के आधार पर तय होता है। उपयोगिता अधिक और उपलब्धता कम यही चीज़ों के मूल्य को बढ़ाती है। आज सोने की उपलब्धता लोहे की तरह और लोहे की उपलब्धता सोने की तरह हो जाये तो दोनों वस्तुओं के दामों में परिवर्तन आ जायेगा। यही बात करियर और हमारे भविष्य के चुनाव के संबंध में लागू होती है। इस दुनिया में इंजीनियर, डॉक्टर, सीए, सीएस, आईएस, नेता, अभिनेता, वकील, जज या उद्योगपतियों की उपलब्धता की तुलना में ऐसे जानकार कितने हैं जिन्हें आचार्य अमृतचंद्र, समन्तभद्र, कुंदकुंद की कही बात समझ आती है। सहज ही इसका उत्तर दिया जा सकता है। तो सर्वप्रथम ये बात समझें कि उपलब्धता की न्यूनता के आधार पर शास्त्रियों द्वारा अर्जित ज्ञान किसी भी अन्य व्यक्ति से ज्यादा मूल्यवान है। आप अद्वितीय कहे जा सकते हैं पर दूसरे क्षेत्रों में संलग्न अर्थ के मिथ्या उपासक कतई नहीं। इसी तरह बात यदि उपयोगिता की हो तो इसका उत्तर किसी शास्त्री को समझना पड़े तो ये दुर्भाग्य की बात ही कही जायेगी। दुनिया की कोई भी मीमांसा अपनी संवेदनात्मक संतुष्टि का आधार नहीं है मात्र ज्ञानतत्व की मीमांसा से ही ये संभव है। अतः ये सर्वाधिक आवश्यक है कि शास्त्री करने के बाद खुद को कोसने की वृत्ति त्याग दें जो लोग इस वृत्ति से संतृप्त हैं वे आध्यात्मिक क्षेत्र में तो छोड़िये लौकिक क्षेत्र में भी कुछ नहीं हासिल कर पायेंगे। शास्त्री होने पर बेवजह का अभिमान भी न पालें लेकिन अपने यथोचित सम्मान को भी विस्मृत न करें।
      अब बात करते हैं कि उपयुक्त करियर क्या है...एक एम.बी.बी.एस किया व्यक्ति चिकित्सा क्षेत्र में जाये तो ही अच्छा है न कि व्यवसायी बने तो अच्छा है। एक बी.ई पास इंजीनियरिंग करते हुए ही सही है न कि बैंकर्स बने तो अच्छा है। इसी तरह शास्त्री किया व्यक्ति जिनवाणी की सेवा करे तो ही सर्वोत्तम है न कि किसी और क्षेत्र का आग्रही हो तब अच्छा है। किंतु यहाँ भी उपयोगिता और उपलब्धता का सिद्धांत लागू होता है। अतः जो लोग समाज या संस्था के किसी वर्ग से जुड़कर पूर्णतः तत्वप्रचार में लग सकत हैं तो वो तो सर्वोपयोगी एवं सर्वोत्तम ही है किंतु न लग पायें तो अन्य लौकिक क्षेत्रों में आजीविका का साधन चुनने के उपरांत समय और परिस्थितियों की अनुकूलता के अनुसार तत्वप्रचार करें। लेकिन वे चाहे किसी भी क्षेत्र में रहें वो क्षेत्र उन्हें तत्वविचार करने में बाधा नहीं डाल सकता तो तत्वविचार में तो अनवरत संलग्न रहें।
      इस तरह यदि किसी समाज का हिस्सा बन निरपेक्षतया स्वाध्याय की परंपरा को जीवित बना सकें तो वो ही भविष्य के लिये अच्छा है। इसके कुछ नायाब उदाहरण सामने हैं जैसे सुनील जी जैनापुरे(राजकोट), मनीष जी बरेली(इंदौर), अभिषेकजी सिलवानी(पालड़ी) इत्यादि जो कि समाज में स्वाध्याय की परंपरा को जीवंत बनाये हुए हैं। ये लोग अपने-अपने क्षेत्र में लौकिक कार्यों से भी जुड़े हैं किंतु वो चीज़ पार्टटाइम है स्वाध्याय की धारा को बनाये रखना इनके लिये फुलटाइम वर्क है। इसी तरह किसी संस्था से जुड़ना और वहां से अपनी लौकिक जरुरतों की पूर्ति की व्यवस्था के साथ यदि जिनवाणी सेवा का सौभाग्य मिल पा रहा है तो भी अति उपयुक्त है। इस क्षेत्र में शान्तिकुमारजी पाटिल, राजकुमार जी बांसवाड़ा, संजीवजी गोधा, पीयुषजी, धर्मेन्द्रजी, प्रवीणजी, विरागजी शास्त्री जैसे नाम उल्लेखनीय है। वास्तव में शास्त्रित्व के असल उद्देश्यों को यही लोग साकार कर रहे हैं। इस मामले में कुछ अपवाद हो सकते हैं जो दिग्रभ्रमित हैं लेकिन अपने ज्ञान का सही उपयोग यहीं हो सकता है। ये हमारे इस भव के लिये भी उपयोगी है और अन्य भवों के लिये भी।
      अब कुछ लौकिक क्षेत्रों पर भी नजर डाल लेते हैं। जिनमें सबसे प्यारा और जनप्रिय करियर है अध्यापक, प्राध्यापक, व्याख्याता बनना। इसके लिये अपनी रुचि के अनुसार विविध विषयों में पोस्टग्रेजुएशन करने के बाद उस विषय में नेट, स्लेट का एक्साम क्लीयर करें और उसी विषय में डॉक्टरेट (पीएचडी) कर अध्यापन के क्षेत्र से जुड़ें। हर युनिवर्सिटी का पीएचडी के लिये अलग इंट्रेस टेस्ट होता है और नेट का एक्साम वर्ष में दो बार सीबीएसई द्वारा कंडक्ट किया जाता है। केन्द्रीय विद्यालय, डीपीएस जैसे कई नामी विद्यालयों में शिक्षण हेतु चयन के लिये भी एक्साम होता है। इस क्षेत्र में आज अच्छा पैसा तो है ही साथ ही आपको भरपूर समय भी मिलता है जिसे आप विभिन्न सामाजिक गतिविधियों में लगा सकते हैं और अध्यापन के बाद की संतुष्टि का कोई दूसरा विकल्प नहीं। ये राष्ट्रनिर्माण का सबसे उपयुक्त पेशा है। कई शास्त्री इस पेशे से जुड़े हुए हैं और तत्वप्रचार में भी अपना योगदान दे रहे हैं।
        अब बात एक अति महत्वाकांक्षी करियर की। यदि आप में योग्यता, मेहनत करने की सामर्थ्य, धैर्य और अच्छी तथा स्मार्ट स्मरणशक्ति है तो यूपीएससी की तैयारी कीजिये। जिससे देश के प्रतिष्ठित पदों यथा आईएएस, आईपीएस, आईएफएस जैसे पदों पर सेवा करने का अवसर प्राप्त होता है। यूपीएससी की तैयारी तो चुनौतीपूर्ण है ही साथ ही इन पदों पर काम करना भी बेहद चुनौतीपूर्ण है। इस समय जैना इंटरनेशनल ट्रेड ऑर्गेनाइजेशन (JITO) यूपीएससी की तैयारी करने में मदद करता है किंतु इसका भी एक्साम होता है। इस बारे में टोडरमल स्मारक के पूर्व विद्यार्थी प्रमोद शास्त्री से संपर्क किया जा सकता है। यूपीएससी देश के तमाम कॉम्पटीशन एक्साम की माँ है यदि आप इसके लिये तैयारी करते हैं तो अन्य एक्साम में सफल होने की आपकी सत्तर प्रतिशत तैयारी तो हो ही जाती है। स्टेट लेवल पीएससी भी ब्यूरोक्रेट (नौकरशाह) बनने का अच्छा और यूपीएससी से थोड़ा सरल रास्ता है।
      बैंकिंग और बीमा सेक्टर एक अन्य अच्छा कार्यक्षेत्र में जो स्नातक होने के बाद चुना जा सकता है। आईबीपीएस द्वारा बैंक पीओ, क्लर्क, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, नाबार्ड आदि के लिये विभिन्न पदों पर एक्साम लिये जाते हैं। गणित, इंग्लिश और सामान्य अध्ययन और तार्किक क्षमता अच्छी होना इस एक्साम की तैयारी के लिजे जरुरी है। कई कोचिंग संस्थान बैंकिंग की तैयारी कराते हैं जो बैंक के साथ एलआईसी, यूआईसीसी, फूड कॉर्पोरेशन, टैक्स ऑफिसर और एसएससी (स्टॉफ सर्विस कमीशन) एक्साम के लिये भी फायदेमंद है। आईबीपीएस की वेबसाइट से इसके एक्साम के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। आरबीआई और एसबीआई एक्साम के लिये भी यह तैयारी उपयोगी है। एसएससी एक्साम भी कई विभागों में विभिन्न पदों पर चयनित होने के लिये उत्तम विकल्प है। इससे लोकसभा, विधानसभा, मंत्रालय, सचिवालय आदि में विभिन्न पदों पर चयन होता है। नितेन्द्र शास्त्री, अकाझिरी ( वर्तमान में कोटा निवासी) से इस विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त की जा सकती है।
      संस्कृत या हिन्दी से एम.ए. करने के बाद राजभाषा अधिकारी बनने का रास्ता भी शास्त्रियों के लिये खुला हुआ है। आज सभी बैंकों में, विभिन्न विभागों, अस्पतालों और कार्यालयों में राजभाषा अधिकारी की जरूरत है। इस एक्साम के लिये आपकी हिन्दी और अंग्रेजी पे पकड़ होने के साथ गणित और सामान्य अध्ययन का आधारभूत ज्ञान होना जरुरी है। निपुण शास्त्री टीकमगढ़, रजित शास्त्री भिण्ड राजभाषा अधिकारी के रूप में काम कर रहे हैं।
      स्नातक के बाद विविध क्षेत्रों में एमबीए करने का विकल्प भी है। सामर्थ्य है तो CAT का एक्साम दें जिससे अच्छा कॉलेज अध्ययन हेतु प्राप्त हो सके। अन्यथा हर युनिवर्सिटी के अपने स्तर पर कॉमन एंट्रेंस टेस्ट होते हैं। नितिन शास्त्री सेमारी, आकाश जैन छिंदवाड़ा उन शास्त्रियों में से हैं जिन्होंने एमबीए के बाद खासी लौकिक सफलता हासिल की है।
      मॉस कम्युनिकेशन और जर्नलिस्म शास्त्री करने के बाद एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है। जिसमें नेम एंड फेम दोनों काफी है लेकिन प्रतिस्पर्धा और संघर्ष भी बहुत है। संघर्ष के चलते कई बार आपका तत्वज्ञान प्रभावित हो सकता है। अतः सोच-समझकर ही इस मार्ग में आयें। वैसे ये संभावना दूसरे क्षेत्रों में भी है। खैर, प्रसार भारती में सरकारी नौकरी के अलावा कई न्यूज चैनल, अखबार और पत्रिकाओं में काम करने का रास्ता खुलता है। इसके साथ ही सभी संस्थाओं, विभागों, विद्यालयों और कार्यालयों में जनसंपर्क अधिकारी की नियुक्ति अनिवार्यतः की जाती है वो रास्ता भी मॉस कम्युनिकेशन और जर्नलिस्म से खुलता है। मैं स्वयं इस पढ़ाई के बाद वर्तमान में डीडी न्यूज में कार्यरत हूँ इसके अलावा चैतन्य शास्त्री, अभिषेक जैन मड़देवरा, तन्मय जैन खनियाधाना, अरहंतवीर जैन फिरोजाबाद इस क्षेत्र में संलग्न है।
      IELTS, TOFFEL ये वो एक्साम है जिन्हें क्लीयर करना विदेश में अध्ययन करने के लिये जरुरी है एक बार आप इन्हें क्लीयर कर बाहर अध्ययन करने की कोशिश करते हैं तो सफलता मिल सकती है। विदेश जाना भी दिग्रभ्रमित करने वाला साबित हो सकता है अतः सतर्कता के साथ आगे बढ़ें। कहा जाता है कि पहला कदम सोच समझकर बढ़ाईये क्योंकि दूसरा कदम अंधा होता है।
      एलएलबी और एलएलएम भी शास्त्री के बाद की जा सकती है। पर कई बार ये क्षेत्र नैतिकता और हमारे सत्य-अहिंसा के सिद्धांतो के प्रतिकूल हो जाता है अतः सर्व ओर से अपना “SWOT” Analysis (Strength, weakness, Opportunity, Threats) करने के बाद ही इस क्षेत्र में आगे बढ़ें। एलएलबी के बाद सिविल जज एक्साम की तैयारी भी की जा सकती है। मेरा भाई अर्पण स्नातक होने के बाद इस क्षेत्र में अध्ययनरत है। इसके अलावा बी.लिब और एम.लिब कोर्स लाइब्रेरियरन बनने के लिये उपयुक्त विकल्प है। विभिन्न सरकारी संगठनों और बड़े प्रायवेट संस्थानों में लाइब्रेरियन का अच्छा वेतनमान है। शांतिपूर्ण और स्वस्थ नौकरी है। मोनू शास्त्री खड़ेरी से इस बारे में पता किया जा सकता है।
      सीए और सीएस भी स्नातक के बाद बना जा सकता है लेकिन शास्त्रियों की पृष्ठभूमि मैथ्स एवं कॉमर्स की न होने के कारण ये राह खासी मुश्किल है। किंतु फिर भी यदि दम है बुद्धि है और मेहनत करने का जुझारुपन है तो कोशिश की जा सकती है पर यकीन मानिय राह वाकई बहुत मुश्किल है। अब तक मेरी नजर में कोई शास्त्री सीए.सीएस नहीं है।
      कुछ गैर पारंपरिक क्षेत्रों में भी प्रयास किया जा सकता है जैसे एक्टिंग, जिसके लिये नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली तथा फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टिट्युट, पुणे प्रतिष्ठित संस्थान है। शास्त्रित्व की प्रकृति के विरुद्ध है ये वाला क्षेत्र तथा सोच समझके ही निर्णय लें। एविएशन क्षेत्र में भी नौकरी हैं एयपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया में कुछ अच्छे पदों पर नौकरी है तथा ब्वॉयज एयर हॉस्टेस भी बना जा सकता है। पर ये भी शास्त्रियों को शोभा नहीं देता। फैशन डिजाइनिंग और फोटोग्राफी में भी करियर विकल्प हैं।
      योगा और न्युट्रिशियन के सेक्टर में भी नौकरी विकल्प मौजूद हैं। हर विश्वविद्यालय में योगा एंड न्युट्रिशियन को लेकर अलग से डिपार्टमेंट है। वर्तमान में ये काफी उभरता हुआ क्षेत्र है। रेलवे के विभिन्न पदों पर भी प्रतियोगी परीक्षाएं होती हैं। उनकी तैयारी भी एसएससी की तरह की जा सकती है।
      विभिन्न भाषाओँ जैसे जर्मन, स्पेनिश, फ्रेंच, इटालियन, मंदारिन, जापानीस जैसी भाषाओं में भी डिग्री-डिप्लोमा होते हैं। इन भाषाओँ में दक्ष होने के बाद कई क्षेत्र विदेशों में कार्य करने के लिये खुल जाते हैं। ट्रांसलेशन और लेखन के भी सेक्टर में अच्छा काम मौजूद है। अतः उस दिशा में जाने का सोचा जा सकता है।

      अंततः आप स्वयं इंटरनेट फ्रेंडली होकर विभिन्न क्षेत्रों के कोर्स के बारे में अपनी रुचि के अनुसार जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। मैंने अपनी जानकारी अनुसार यहाँ लिखा है। रास्ते कई और भी हैं विभिन्न विशेषज्ञों से चर्चा कर स्वविवेक से निर्णय करें। यदि स्वयं का जमा-जमाया अच्छा व्यवसाय है तो अनावश्यक बुद्धि न भटकायें। शांतिपूर्वक उसी में संलग्न रहते हुए तत्वज्ञान से जुड़े रहें। बाकी तो नियति स्वयं आपके भविष्य का निर्धारण कर देगी। नियति ही अंतिम सत्य है लेकिन इस तरह के मामलों में नियति नहीं आपकी नीयत ज्यादा मायने रखती है। नियति का मिथ्या पक्ष ले अपनी नीयत को कभी दूषित न होने दें। हमारी नीयत की प्रतिष्ठा और इसका उपयुक्त जीवन तत्वप्रचार और तत्वविचार में ही निहित है।