हर शुरुआत का एक अंत होता है और हर अंत कि एक नयी शुरुआत। लेकिन सपाट दौड़ती जिंदगी के किसी अध्याय का जब अंत होता है तो दिल बैठ जाता है। नयी शुरुआत के बारे में दिल में एक बेचैनी होती है। शास्त्री अंतिम वर्ष में विदाई के बाद कुछ ऐसा ही आलम होता है। दरअसल हर क्षेत्र में नयी शुरुआत करना बड़ा भयावह होता है। लेकिन इन सब परिवर्तनों के बावजूद कुछ चीजें ऐसी है जो हमेशा साथ निभाती है।
एक सौन्दर्य प्रसाधन में प्रयुक्त ये लाइन बड़ी खुबसूरत है कि "ये नेम ये फेम बस कुछ दिनों की मेहमान है शुक्र है कुछ चीजें हमेशा साथ निभाती है।" किसी खास स्थान पर रहकर हम अपना एक अलग मुकाम बनाते है फिर हमें उस जगह कों छोड़कर एक नयी शुरुआत करना होती है जहाँ हमें फिर एक नए सिरे से अपनी पहचान बनाना पड़ती है। जिंदगी का ये दौर बड़ा कठिन होता है। फिर बस एक उम्मीद लिए आगे बढना होता है।
कहते हैं 'खाना-पानी और हवा के बिना आदमी कुछ समय गुजार सकता है पर उम्मीद के बिना एक समय भी नहीं गुजरा जा सकता।' इन्सान की ये उम्मीद उन्ही चीजों से होती है जो हमेशा साथ निभाती है। उपलब्धियों का संसार तवायफों के कोठों की तरह होता है जो कभी किसी के साथ होती है तो कभी किसी और के। सफलता के दौर में हम उन चीजों कों भी भुला देते हैं जो हमेशा साथ निभाती है। लेकिन शुक्र है वे तब भी हमारे साथ होती है।
अहंकार, उपलब्धियों से आता है जो हमें अँधा बना देता है इस दौर में हम ये नहीं देख पाते जो हमेशा हमारे साथ होता है। चरम तन्हाईयों का वक़्त, गहन असफलता का दौर हमें एक अवसर मुहैया करता है कि हम ये देख सकें कि क्या हमेशा हमारे साथ है। सफलता में प्रस्तुत हमें नज़र आता है कालीन के नीचें हमारे साथ चल रहे अप्रस्तुत कों हम अनदेखा कर देते हैं। उपलब्धियां और उन पर बजने वाली तालियाँ प्रस्तुत होती हैं तथा अच्छे और बुरे दौर में छुपी संभावनाएं अप्रस्तुत होती है। जो हमेशा हमारे साथ रहती है। दुःख के समय में सुख कि संभावनाएं छुपी रहती है तथा सुख के समय में और बेहतर होने कि संभावनाएं दबी रहती है। कई बार कहीं आस होती है वहां से निराशा हाथ लगती है तो कई जगह उम्मीद से दुगना मिल जाता है।
बेवशी और तन्हाईयों के दौर में अचानक एक ऐसे दोस्त का फोन आता है, जिसकी हमने उम्मीद ही नहीं की थी और वो हमें एक नयी उर्जा दे जाता है। अचानक एक मामूली- सा, साधारण इन्सान हमारा हाथ पकड़कर हमें गले लगता है और हम अपना दर्द भूल जाते हैं। तकलीफों के क्षण में हमारे माँ-बाप या भाई का ऐसा कहना 'मैं तुम्हारे साथ हूँ' हमारी तकलीफ दूर कर देता है। कहीं एक फोन की घंटी, कहीं एक पत्र, sms, या e-mail कहीं एक फिल्म का गाना,कोई पुस्तक या किसी के प्रवचन कुछ न कुछ ऐसा होता है जो चरम मजबुरियों में हमारा साथ निभा जाता है। इन सारी चीजों में जो एक चीज समान है वो है सम्भावना।
संभाव्य कों संभव बनाना ही जिंदगी है। संभावनाओं में उम्मीद हैं, रहस्य है, रोमांच है और इनके कारण ही हमारी जिंदगी है इतनी रहस्यपूर्ण-अजीबोंगरीब।
इन सारी चीजों से बढकर हमेशा हमारे साथ होता है हमारा आत्मबल और जीवन जीने की जिजीविषा। जिसके दम पर हम सदा उठकर खड़े होते हैं। हर दौर की अपनी चुनौतियों और परेशानियों के समक्ष खुद कों तैयार करते हैं। वास्तव में हमें इस चीज का शुक्रिया अदा करना चाहिए की हमारा आत्मबल हमारे साथ है क्योंकि आत्मबल के बिना सारा जहाँ हमारे साथ हो तब भी हम दुनिया में कुछ नहीं कर सकते।
हमें हमारी दृष्टि कों विस्तृत आकार देना बहुत ज़रूरी है जो अप्रस्तुत कों भांपने के काबिल हो सके। नहीं तो हम ये कभी नहीं जान पाएंगे की क्या हमेशा हमारे साथ है? हमारी परेशानी परिस्थिति का अच्छा या बुरा होना नहीं हमारी परेशानी है उस परिस्थिति के प्रति हमारा रवैया। अच्छी और बुरी दोनों स्थिति में समान भाव रखना ही चरम इंसानीयत है..........
हमारा स्मारक : एक परिचय
श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं।
विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें।
हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015
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4 comments:
aapke lekh me ek ajab sa jadu hal....maja aa gaya...
kabhi kabhi aisa lagta h ki is tarah ke vichar rakhne valo ke sath me kyu nahi rahta hu. thanks for suggest us.
Tu sach me ek philosopher ho gaya hai . Well Done.
vicharo ki ganga aise hi bhate chale
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