हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Sunday, August 8, 2010

स्मारक रोमांस-(शिविर की धमाचौकड़ी)

(इसे पढने से पहले स्मारक रोमांस की पूरी श्रंखला पढ़ें.)

हमारे ब्लॉग की सबसे लोकप्रिय श्रंखला 'स्मारक रोमांस' के बारे में हमें हमेशा पाठकों की शिकायत मिलती रही है...कि इसमें कई घटनाओं कों छोड़ दिया गया है। दरअसल ये विस्तार भय से बचने एवं ओवरडोज न हो जाये इस भय से संक्षिप्त किया गया...बहरहाल हम फिर हाजिर है कुछ सुरम्य यादों के साथ....

स्मारक के वार्षिक शिविरों का तो क्या कहना...यहाँ दिवाली-होली नही मनाई जाती लेकिन वार्षिक शिविर किसी बड़े भारी उत्सव से कम नही होते। ये खुशियाँ कुछ ऐसी होती जैसी ख़ुशी बच्चों कों अपने घर में सगाई-शादी होने पर मिलती है। शिविर लगने से ३-४ दिन पहले से ही क्लासेस की छुट्टी और शिविर की तैयारी जोर पकड़ लेती थी। मीटिंग्स का दौर शुरू हो जाता है। और इन मीटिंग्स में शिविर संचालन के लिए विभागों का बटवारा होता है-किसी को आवास विभाग तो किसी को स्वागत या VIP...VIP विभाग तो सच में VERY SPECIAL विभाग हुआ करता था। इस विभाग के मुखिया के पास सबसे अधिक राशि को खर्च करने के अधिकार हुआ करते थे...बिलकुल भारत सरकार के रेल मंत्रालय की तरह। ऊपर से दूध-चाय, फल-सब्जी, तेल-कंघा से लेकर खुद के कपड़ों पर स्त्री(press) कराने की सुविधा भी। खैर...

विद्यार्थी अपने सगे-सम्बन्धियों, रिश्ते-नातेदारों, और गाँव भर के भांत-भांत के नमूनों को बड़े चाव से शिविर में आने का निमंत्रण दिया करते थे मानो इनकी खुद की बिटिया विहा रही हो। ये आमंत्रण शिविर में तत्वज्ञान के लाभ हेतु दिए जाते हो ऐसा नही है, दरअसल इनका प्रयोजन अधिकतर गुलाबी शहर की रंगीनियों को देखना हुआ करता था। और अपने उन रिश्तेदारों के लिए रूम बुक कराने का अंदाज कुछ ऐसा हुआ करता था कि मानो बिल गेट्स के दामाद शिविर में पधार रहे हैं...और उन्हें रूम जरुर मिलना चाहिए, भले ही विद्वानों को प्रवचन हाल के किसी कोने में सुला दिया जाय। और उन रिश्तेदारों के आने के बाद शुरू होता है शिविर का लाभ लेने का दौर....जी हाँ कभी राजमंदिर तो कभी बिडलामंदिर या हवामहल और जंतर-मंतर।

स्मारक के जूनियर विद्यार्थियों में भी शिविर को लेकर खासा जोश रहता था...और भोजनालय में परसवाई करने की होड़ लगी रहती थी। ये नन्हे-मुन्ने बच्चे बड़े-बूढों को खाना परसते समय अपना रौब दिखाने का कोई मौका नही गवाते थे। धोके से कोई अतिथि यदि एक सब्जी के लिए दो कटोरी रख ले तो इन भावी शास्त्री की आँखे लाल हो जाया करती थी...और यदि किसी ने गलती से दो रसगुल्ले मांग लिए तो समझो उसकी शामत आ गई। भोजनालय के गेट पे खड़े शास्त्री वन्धु के अन्दर भी एक अकड़ महसूस की जा सकती है...जैसेकि ये महाशय कोहेनूर हीरे की पहरेदारी कर रहे हों।

आवास विभाग के काउंटर पे बैठना तो हर किसी का शगल हुआ करता है। हालाँकि काउंटर के ऊपर बैठना पूर्णतः वर्जित है फिर भी अपने शिक्षकों और अधिकारीयों से बचकर ये काम अक्सर कर लिया जाता था। आवास विभाग का मुखिया १० दिन के लिए खुद को इस संस्था का मैनेजर समझा करता है...और फुटेरा के रज्जुमल से लेकर सिवनी के दिग्गज विद्वान् तक की आवास व्यवस्था का ठीकरा इनके सर हुआ करता है। आवास व्यवस्था के इस सारे पचडम में ये जनाब अपने आवास की व्यवस्था करना नही भूलते...एक VIP कमरा इन महाशय के लिए ही बुक रहता है...जहाँ ये अपने ३-४ इष्ट-मित्रों के साथ आराम फ़रमाया करते हैं। प्रायः हर विभाग के प्रमुख और कुछ रौबदार विद्यार्थी विशिष्ट अतिथि भोजनालय में ही जल-पान ग्रहण किया करते हैं। और अतिरिक्त समय में चाय-दूध का इंतजाम VIP विभाग का प्रमुख कर दिया करता है। जिसके एक साइन(signature) पर केन्टीन में चाय-पानी मुफ्त में मिल जाता है। इन दिनों इस VIP विभाग प्रमुख के हस्ताक्षर की कीमत सलमान खान के औटोग्राफ से भी ज्यादा होती है।

शिविर के दौरान स्मारक के गेट के बाहर संचालित केन्टीन भी बेहद चटकारेदर होती है जहाँ जठराग्नि से लेकर नेत्राग्नि तक की तृषा को मिटाया जाता है। कई छोटे-छोटे गुटों में बटी महफ़िलें आप यहाँ देख सकते हैं जहाँ खूब गप्पबाजी होती है, तो प्रवचनों और विद्वानों की समीक्षा भी यहाँ सुनने मिल जाएगी। इन महफ़िलों का दौर तब तक जारी रहता है जब तक उन महफ़िलों में खलल डालने अधिकारी वर्ग के कोई भाईसाहब न आ जाये। सच उन भाईसाहब का बहुत खौफ होता था, महफ़िलों की रंगीन, मजबूत पकड़ उनका नाम सुनकर ही ढीली पड़ जाती थी (उम्मीद है अब भी ये डर जिन्दा हो)। बहरहाल अनुशासन के लिए ये खौफ बहुत जरुरी था।

शिविर के एक दिन कंठपाठ का आयोजन सभी के चर्चा का केंद्र होता था,(कंठपाठ बोले तो कुछ खास विषयों को याद करना) कुछ इस आयोजन की तारीफ करते थे तो कुछ आलोचना करते भी देखे जाते थे। कंठपाठ में भी धांधलियां कम नही होती थी...दो दोस्त एक-दूसरे को ही कुछ का कुछ विषय सुनाकर अपना नाम कंठपाठी की लिस्ट में दर्ज करा देते थे। और जब इन्हें पुरुस्कार स्वरूप कुछ राशि मिलती तो उसका आकलन कुछ इस तरह हुआ करता था-'ऐ मुझे १५० मिले हैं, तीन फिल्म की व्यवस्था हो गयी तो दूसरा कहता-बस! मुझे ५०० मिले हैं एक जींस आ जाएगा'

बड़ी रंगीनियाँ थी भाई...अधिकारीयों और विद्वानों की वाट लगाने में भी इन शास्त्रियों को कोई गुरेज नही था। अक्सर सुनने मिल जाएगा-"भैया फलाने विद्वान् की बस बातें ही बड़ी-बड़ी है उनके यहाँ सुवह नाश्ता देने जाओ तो ऐसा जान पड़ता है मानो उन्हें कभी नाश्ता ही करने नही मिलता...अकेले उनके रूम पे दूध की केटली खाली हो जाती है" तो दूसरा कहता "सही कहा भाई कल मुझे प्रेस के लिए इतने कपडे दिए मानो पूरे खानदान के कपडे यहाँ प्रेस करवाने ले आये हो"

सब कुछ बड़ा गजब का था...बहरहाल ये सारा स्मारक को देखने का एकदेश नजरिया है..स्मारक के यथार्थ को व्यंग्योक्ति से बताने की प्रमुखता है...सबकुछ इतना हास्यास्पद या विचित्र नही है जैसा यहाँ लिखा गया है। स्मारक की जमीन इस धरा पर जन्नत सी जान पड़ती थी(उम्मीद:अब भी जन्नत सी होगी और इसे ऐसा ही रखा जाएगा-समस्त राजनीति और व्यक्तिगत हितों से दूर)...जहाँ सब कुछ बड़ा अजीब सा लगता था फिर सब जीवन का हिस्सा बनता गया............

(प्रतिक्रियाएं इस ब्लॉग की सांसे हैं...अवश्य दें)

6 comments:

Tanmay jain said...

मजा आ गया ......इस श्रंखला को इसी तरह जारी रखे

Unknown said...

बहुत बढिया..एसे ही लेखों से हमें तरोताजा करते रहें ......

dr. manish jain said...

bhai maza aa gaya. kamal kar diya.

ANKUR JAIN said...

manishji bhaisahab ko sadar jayjinendra....aapke comments ke liye bahut-2 dhanyvad...

Unknown said...

very very nice...... padkar lagta hai vo dunia phir se vapas aa jaye!

Anonymous said...

ye to bs suruaat hai ik safar ki,abhi to bahut door manzilon tak jana hai.......