हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Wednesday, December 9, 2009

अभिवादन में जय-जिनेन्द्र ही बोले ...



पंडित टोडरमल स्मारक भवन में अभी 'जय-जिनेन्द्र सप्ताह ' चल रहा है जिसके अंतर्गत सभी आपस में जय जिनेन्द्र बोल रहे है ....सभी सधर्मी भाई और बहनों ने यह संकल्प किया है की हम एक दुसरे से मिलते समय,परिचय करते वक़्त और हर तरह के अभिवादन में जय जिनेन्द्र बोलेंगे जिससे  हमेशा अपने आराध्य जिनेन्द्र परमात्मा को याद करते रहे....
                                                                    भारत देश की यह संस्कृति रही है की जब यहाँ के लोग आपस  में एक दुसरे से मिलते है तो अभिवादन करते हुए कुछ न कुछ जरुर बोलते है ..हर धरम के अनुयायी अभिवादन में अपने-२ इष्ट  देव का नाम लेते है जैसे हिन्दू भाई जब मिलते है तब सीता राम या राधे राधे बोलते है ..मुस्लिम भाई अल्ला का नाम लेते है ..सिख भाई गुरु साहब को याद करते है ...जैन धरम में  अभिवादन करते समय जय जिनेन्द्र बोला जाता है .....अगर हम थोड़ी गहराई से विचार करे तो जैन धरम में किसी व्यक्ति को याद नही किया जा रहा है बल्कि गुणों को स्मरण किया जा रहा है क्योकि  जैन धर्म  व्यक्ति प्रधान धर्म  नही है ..यहाँ तो हमेशा से ही गुणों को पूजा जाता है ...अब जिनेन्द्र किसी व्यक्ति का नाम नही है बल्कि जिन्होंने अपनी इन्द्रियों  को हमेशा के लिया जीत लिया है ऐसे जितेन्द्रिय जिन ही जिनेन्द्र कहलाते है ...यह बात हर धर्म को मान्य है की इंसान की सबसे बड़ी शत्रु इन्द्रियां ही है और उन पर जो विजय प्राप्त कर लेता है वो ही भगवान् कहलाता है ..वास्तव में जय जिनेन्द्र शब्द अपने आप में ही बहुत व्यापक और विशाल है ..और ऐसे शब्द को बोलने बाले भी बहुत विशाल सोच और ह्रदय वाले हो सकते है ..हम सभी को अपने सम्पूर्ण जीवन काल में सिर्फ व्यापक सुख की तलाश है जो सुख सिर्फ जिनेन्द्र बन कर ही मिल सकता है ...हम सभी अपनी वाणी में जिनेन्द्र को शामिल करे ताकि हम भी जितेन्द्रिय जिन बन सके ..आज हम सभी सधर्मी भाई यह संकल्प करते है की हम अभिवादन में जय जिनेन्द्र बोलकर अपने आराध्य को याद  करे और खुद जिनेन्द्र बनकर व्यापक और विशाल सुख को प्राप्त करे आज वक़्त ने हॉय ..या हेल्लो बोलना सिखा दिया है......वो गलत  नही है पर हम अपने ज़हन में अपने भगवान् को जरुर स्थान दे, ताकि  हम भी भगवान बन सके  ......इसी  आशा के साथ आप सभी को
जय जिनेन्द्र

No comments: