उन दिनों गाँव-नगरों के मंदिरों में कोई छोटे से पंडितजी की बहुत चर्चा हुआ करती थी। हम भी भैयाजी या पंडितजी के संबोधन के साथ उन पंडितजी की पाठशाला में पड़ा करते थे। घर के बड़े-बुजुर्गो से तारीफ सुना करते थे-"कि पंडितजी कि अभी उम्र ही क्या है और ज्ञान तो देखो"। हम भी बड़े अचरज में देखा करते थे हमारे गाँव के दूसरे भैया लोग जहाँ हुल्लड़बाजी में मशगूल रहते थे, उन्ही कि उम्र के कोई पंडितजी के नाम से जाने जा रहे है। घर कि मम्मी-दादी लोगो का सोचना होता था-'हम भी हमारे चिंटू, गोलू या लक्की को शास्त्री बनायेंगे। लेकिन घर के चिंटू, गोलू या पप्पू को क्या पता कि ये शास्त्री क्या होता है। उनकी उम्र तो अभी ये समझने लायक भी न थी कि आज के समय में डाक्टर, इंजीनियर या शास्त्री में से किसकी इज्ज़त ज्यादा है। पर दादा, पापा और मम्मी कहते है तो कुछ तो अच्छा होगा ही-ये शास्त्री बनना। और बच्चों के लिए तो अपने पापा से बड़ा हीरो कोई होता ही नहीं है।
कुछ इसी कशमकश के बाद थोड़ी बहुत प्रक्रिया से गुजरकर पहुच गये जयपुर। ये शहर पिंकसिटी के नाम से जाना जाता है, ये सुन रखा था। हमें तो ऐसा लगा जैसे कोई ब्रिटेन,फ्रांस या जर्मनी आ गए हों। भांति-भांति के लोग नजर आते थे। सब ऐसे घूरा करते थे-मानो हम कोई पेन्डोरा नामके गृह से आये हों। चार लड़कों का ग्रुप पास से गुजरता और बोलता जाता "ऐ जरा इसका कुरता तो देख"। शायद कुरता कुछ ज्यादा ही अजीब होगा। बाद में पता चला कि वे हमारे सीनियर कहलायेंगे। जिनके नाम के आगे हमें 'जी' लगा के संबोधन करना होगा। यदि जय-जिनेन्द्र नहीं किया या उनके सामने गाना गा दिया तो कमबख्त मीटिंग लग जाती थी। "मीटिंग" नाम का शब्द बहुत खतरनाक जान पड़ता था। किसी का हसता चेहरा पीला करना है तो उससे बोल दो" ऐ तेरी चेतनधाम रूम न.३०८ में मीटिंग है"। वहां जाके पता चला कि दुनिया के मनोरंजन का केंद्र गाने गाना भी यहाँ एक जुर्म है।
सीनियर भी जहाँ-तहां चौको-चबूतरों पे भीड़ जमा करके अपने नए-नवेले जूनियर्स को नसीहतें देते रहते थे और स्मारक के अधिकारीयों से लेकर कर्मचारियों तक का चिट्ठा प्रस्तुत करते रहते थे। उनकी बाते कुछ इस तरह कि होती थी कि उनमे वे अपनी तारीफ का तड़का लगाना नहीं भूलते थे। जूनियरों को धौंस देना उनका पसंदीदा शगल हुआ करता था। ऐसे में यदि अधिकारी-वर्ग के कोई भाईसाहब वहां आ जाते थे तो आँखे निपोरकर वहां से कट लेते थे। लेकिन हाँ यदि कोई सीनियर हमसे प्यार से बात कर लेता था तो अपने साथ वालों में छाती चौड़ी हो जाया करती थी। अजब दिन हुआ करते थे वे।
सुना था जयपुर राजस्थान में है, मगर यहाँ आकर तो भांत-भांत के लोग दिखाई पड़ते थे। अलग-अलग बोलियाँ सुनाई पड़ती थी। कई तो ऐसी होती थी कि लगता न जाने कौन से द्वीप कि भाषा है। बाद में पता चला कि कोई मराठी है, कोई तमिल, कन्नड़, गुजराती, वागडी तो कोई पिडावी है। यहाँ पिडावी इसलिए अलग से बताया कि उनका अपनी ही अलग भाषा और ग्रुप हुआ करता था जिनका संसार पिडावा तक सिमटा था। आते ही दो ग्रुप बनते देर न लगी-एम.पी. बनाम मराठी। बस ये दो ग्रुप ही हुआ करते थे, बाकि सब माइनोरिटी के चलते इन दो ग्रुप में ही शामिल हो जाया करते थे-सारा साऊथ मराठी में और सारा उत्तर एम.पी. में। आपस में बहुत फब्तियां कसी जाती "देख ये मराठी है, बहुत खाऊखोर होते हैं" तो दूसरा कहता देख "जे बुंदेलखंड का है, कित्ता घिना है" बस यही आलम था।
प्रवचन तो सुनने जाते पर सब ऐसा लगता 'न जाने कहाँ की कौन सी बात चल रही है'। तो वही बैठे-बैठे खेलने वाले कुछ खेलों का अविष्कार हो जाता था। भोजनशाला का आलम भी अजब होता था-कई ऐसी-ऐसी दाले देखने को मिली जो हमारी निगाहों के सामने पहली बार गुजर रही थी। भोजनालय भी अंतर्राष्ट्रीय था जहाँ विदेशी कुक कम किया करते थे। जी हाँ, कुक महोदय गोपाल, केदार नाम से जाने जाते थे और अब तक गुलाम न हुए इकलौते देश नेपाल से सम्बन्ध रखते थे। शुरुआत में सब अजीब था पर फिर सब जीवन का हिस्सा बनने लगा। घटनाये अभी और भी है-संस्कृत क्लास का खौफ और क्रिकेट एक जश्न। पढते रहिये-स्मारक रोमांस जारी है......
(यदि आपकी कुछ यादें ताज़ा हुई हों तो प्रतिक्रिया अवश्य दें, और अपनी खुशनुमा यादें भी बांटे।)
हमारा स्मारक : एक परिचय
श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं।
विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें।
हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015
9 comments:
aisa lagta h ki bus yahi bo yade h jo samporn jivan me dil ko gudgudati rahengi.
great......pls zari rakhiye.....
majedar story h kuch hatke kam kar rahe ho kuch chije kuch hi log kar sakte h jaisa tum kar rahe ho is story me apne aap ko pata hu aor shayd smark ka har ladka is story me apne aapko paye.
"IS BHID ME JO TANHA SA DIKHAI DETA H, VAHI SAKSH MUJHE APNA SA DIKAI DETAH
yaar i realy didnt saw this blogs such a nice movements of our life ............ who is the writer of smarak romance??? pls tel me ok
really intrested
vahut maza aya apni story sun k
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The relative complexities of women's and men's style
Both men and women may feel the difficulties of maintaining their clothing up-to-date and in time, yet men's fashion usually feels a lot less complicated. Of course, for both genders, costumes and fashion choices may be quite as intricate, and there are numerous'modern'items which could rapidly become fashion faux pas - who will say they frequently see people walking around in 70s flares? On the other side, men's style features a few staple goods that can exist forever - which man is going to keep an eye out of place with a good-quality, tailored suit, for example? Select traditional pieces, colors and materials and you'll never look out-of-place.
Why classic men's fashion is timeless
The basic man's suit has barely changed for over a hundred years. True, there are numerous options for various situations, but they are all popular in their search for a smart, sharp search for the individual. The good thing about basic fashion for men is that it's effortlessly fashionable effectively neat. A well-groomed lady will almost always appear his sharpest in a well-tailored suit, and this can be a testament to the design of such clothing. A match will be worn to work in several careers due to the professional look it provides to the individual, instilling a feeling of respect and confidence. Similarly a suit will be worn to several social situations, such as a tuxedo to a black-tie event. This extraordinary flexibility that enables matches to be utilized in virtually all occasions is what gives it its amazing edge and a lasting invest men's fashion.
Contemporary developments in traditional men's style
Though common men's designs will never be replaced, it's interesting to remember that shifts in men's fashion trends have brought certain classic clothes back in fashion. The recognition of vintage clothing, particularly, has taken back a wide-variety of classic styles into men's closets, such as that of the dandy man. 'Dandy'is a term used to make reference to men who dress yourself in a classic yet expensive way, placing importance on appearance and acting in a refined approach. This trend for nearly'over-the-top'classic fashion for men is evident from events like the'Tweed Run', where men and women of all ages dress in especially Victorian-style outfit and decide to try the streets on vintage cycles - with most of the men wearing impressive mustaches! This really is just one of several examples of research showing the resurrection of such designs. Additionally, there are numerous sites online which give attention to gentlemanly style - such as'The Dandy Project'and'Dandyism'- as well as entire internet sites such as'The Art of Manliness'dedicated to providing articles on traditional men's fashion and grooming.
In summary, although certain facets of classic men's style can be brought back as new movements, the simple garments that they derive from will never slip out of fashion.
"All it requires certainly are a few simple costumes. And there's one key - the easier the better." - Cary Grant
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