हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Monday, September 6, 2010

प्रतिष्ठित अखवार 'जनसत्ता' पर हमारा ब्लॉग पीटीएसटी संचार


वैसे तो आये दिन पीटीएसटी संचार ब्लॉग के लिए ढेरों वधाईयां एवं प्रोत्साहन हमें मिलता है...लेकिन इस बार हमारे इस ब्लॉग ने देश के प्रतिष्ठित अखवार 'जनसत्ता' के सम्पादकीय पेज पर अपनी जगह बनायीं। जी हाँ जनसत्ता अखवार के सम्पादकीय पृष्ठ पर नियमित प्रकाशित कॉलम 'समान्तर' में हमारे ब्लॉग का एक लेख "अब वैज्ञानिकों ने...." को 'दुनिया बनाने वाले' शीर्षक के नाम से प्रकाशित किया है। यह लेख हमारे ब्लॉग लेखक चेतन जैन के नाम से by line प्रकाशित हुआ है। यह लेख सितम्बर २०१० के जनसत्ता के सम्पादकीय पृष्ठ पर देखा जा सकता है। ब्लॉग टीम पाठकों एवं अन्य सभी सहयोगियों के इस प्यार के लिए तहे दिल से शुक्रिया करते हैं....साथ ही इसे प्रकाशित करने के लिए अरविंद शेष जी का भी धन्यवाद ज्ञापित करते हैं।

आप इसे जनसत्ता के ई-पेपर www.jansattaraipur.com पर ६ सितम्बर के अंक में देख सकते हैं।

Saturday, September 4, 2010

अलिखित

हमारे ब्लॉग की ये १००वि पोस्ट है....सोचा कुछ खास प्रकाशित किया जाये...तब एक बड़ी ही ख़ूबसूरत कविता हाथ लगी...जो मेरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के अग्रज मयंक सक्सेना द्वारा रचित है..जिसे उनकी प्रत्यक्ष स्वीकृति लिए वगैर छाप रहा हूँ...पर मैं जनता हूँ कि उनकी परोक्ष स्वीकृति मुझे प्राप्त है... अब तक हमने काफी कुछ अपने ब्लॉग में लिखा, प्रकाशित किया लेकिन इतना सब लिखने पर भी बहुत कुछ अब भी अनकहा, अलिखित है...कुछ ऐसा ही भाव बयाँ करती है ये रचना....मजा लीजिये....

"लिखने


और कुछ न लिखने

के बीच

फर्क सिर्फ

कह देने

और

न कह देने सा है

कुछ

जो सोचा गया

कभी

कहा नहीं गया

कुछ

जो मन में चला

कभी

लिखा नहीं गया

कुछ

सोच कर भी

अनकहा रहा

कुछ

जान कर भी

अलिखित है

आज तक...

(साभार गृहीत- www.taazahavaa.blogspot.com)

Friday, September 3, 2010

अब वैज्ञानिको ने भी माना, भगवान् ने नही बनाई दुनिया

हमेशा से ही दुनिया के उत्पाद को लेकर विवाद चला रहा है, हर धर्म में ब्रम्हाण्ड के सृजन कर्ता के रूप में अपने अपने इष्ट देव को माना जाता है....दुनिया के लगभग सभी धर्मो ने पृथ्वी का कर्ता किसी किसी को स्वीकार किया है.....सिर्फ जैन धरम ने हमेशा से ही ब्रम्हाण्ड को अनादि-अनंत बताया है, जिसका सीधा सा मतलब है कि इस दुनिया को किसी ने बनाया है और ही कोई इसे मिटा सकता है.... दुनिया तो जीव, पुदगल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल इन द्रव्यों से मिलकर बनी है... काफी समय से दुनिया के तमाम वैज्ञानिक इस बारे में रिसर्च कर रहे थे की दुनिया आखिर बनाई किसने है.... इसी सम्बन्ध में हाल ही में एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हॉकिंस ने स्वीकार किया है की ईश्वर ने सृष्टि का निर्माण नहीं किया है... बल्कि इस दुनिया का निर्माण स्वतः ही हुआ है... हम आपको पढ़ाते है उस वैज्ञानिक की लिखी किताब के कुछ अंश ......

सर्वश्रेष्ठ भौतिक वैज्ञानिकों में शुमार किए जाने वाले ब्रिटेन के स्टीफन हॉकिंस का कहना है कि ब्रह्माण्ड के निर्माण के सिद्धांतों में अब ईश्वर की कोई जगह नहीं है। हॉकिंस ने यह बात अपनी नई किताब में कही है, जिसके कुछ अंशों का हाल ही में प्रकाशन हुआ है।
अपनी प्रसिद्ध किताब ब्रीफ हिस्टरी ऑफ टाइममें हॉकिन्स ने जिस तरह ब्रह्माण्ड के निर्माण में ईश्वर की भूमिका के प्रति सहृदयता दिखाई थी उससे अलग हटते हुए हॉकिन्स ने कहा है कि बिग बैंगगुरुत्वाकर्षण के नियमोंकी अनिवार्य परिणति से ज्यादा कुछ नहीं है। हॉकिंस का कहना है कि गुरुत्वाकर्षण का नियम हमें यह बताता है कि ब्रह्माण्ड का निर्माण शून्य से भी हो सकता है और ऐसा होता भी है। उनका मानना है कि स्वत:स्फूर्त तरीके से निर्माण की परिघटना ही वह कारण है, जिसने इस दुनिया और हमारा आस्तित्व संभव बनाया है। अगर ऐसा नहीं होता तो कुछ भी नहीं होता। हॉकिंस ने इन मान्यताओं को अपनी नई किताब ग्रैंड डिजाइनमें सामने रखा है। इस किताब का धारावाहिक के तौर पर लंदन के टाइम्समें प्रकाशन किया जा रहा है। हॉकिंस ने कहा कि इस सृष्टि के संचालन की व्याख्या करने के लिए ईश्वर का सहारा लेना कतई जरूरी नहीं है। हॉकिंस ने इससे पहले अपनी प्रसिद्ध किताब ब्रीफ हिस्टरी ऑफ टाइममें यह राय प्रकट की थी कि दुनिया को वैज्ञानिक तरीके से समझने के लिए ईश्वर की अवधारणा पूर्णत: असंगत नहीं है। लेकिन अपनी इस नई किताब में अपनी पुरानी धारणा से आगे बढ़ते हुए उन्होंने कहा है कि न्यूटन के इस सिद्धांत को कि बेतरतीब अव्यवस्था से ब्रह्माण्ड का निर्माण नहीं हो सकता, आज पूरी तरह से सही नहीं जान पड़ती। अपने इस मत की पुष्टि के लिए हॉकिंस ने १९९२ में हुए उस खोज का हवाला दिया है, जिसमें हमारे सौरमंडल से बाहर एक तारे के चारों ओर घूमते ग्रह के बारे में पता चला था। हॉकिंस ने इस खोज को ब्रह्माण्ड की समझ में बदलाव लाने वाला क्रांतिकारी मोड़ बताया है।

Wednesday, September 1, 2010

लोहे का स्वाद

....सम्भवतः हिंदी के सबसे चमत्कारिक...झकझोर देने वाले कवियों में से एक-धूमिल....ये कविता उनकी आखिरी कविता मानी जाती है....

"शब्द किस तरह
कविता बनते हैं
इसे देखो
अक्षरों के बीच गिरे हुए
आदमी को पढ़ो
क्या तुमने सुना कि यह
लोहे की आवाज है या
मिट्टी में गिरे हुए खून
का रंग"
लोहे का स्वाद
लोहार से मत पूछो
उस घोड़े से पूछो
जिसके मुँह में लगाम है.