हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Saturday, January 30, 2010

अक्टूबर में फिर आयेंगे सुमत प्रकाश जी

सुमत प्रकाश जी के १० दिन तक तीन टाइम के मार्मिक प्रवचनों के बाद, आप को जानकार हर्ष होगा की अब सुमत प्रकाश जी के प्रवचनों का लाभ आप दोबारा इसी वर्ष के अक्टूबर शिविर में ले सकेंगे. जी हाँ स्मारक ने उन्हें २०१० के अक्टूबर माह के शिविर के लिए आमंत्रण दे दिया हैं, जिसके लिए उन्होंने स्वीकृति भी देदी हैं. मौका था सुमत प्रकाश जी के आभार प्रदर्शन का, जिसमे आ. शांति जी द्वारा यह सूचना दी गयी जिसके बाद हॉल में तालियों की लहर दौड़ गयी.

आ. छोटे दादा जी ने कहा की यह शिविर भूत पूर्व छात्रों की मुख्यता से रखा जायेगा जिसमे उनके साथ-साथ उनकी पत्नियों को भी आने के लिए कहा जायेगा. स्नातक परिषद् व युवा federation का राष्ट्रीय adhivation भी इसी शिविर में रखा जायेगा.

तो अब तैयार हो जाइये और १० अक्टूबर से १९ अक्टूबर तक अपनी तारीकें ब्लाक कर लीजिये टोडरमल स्मारक में पधारने के लिए और तत्त्व का लाभ लेने के लिए!

Thursday, January 28, 2010

स्मारक में बह रही हैं तत्त्व की गंगा

पिछले ८ दिनों से टोडरमल स्मारक में आध्यात्मिक शिविर जैसा माहोंल चल रहा हैं. आदरणीय सुमत प्रकाश जी के मार्मिक प्रवचनों के बाद अब आ. छोटे दादा के भी समयसार की ७४वी गाथा के आधार से प्रतिदिन शाम को प्रवचन हो रहे हैं. स्मारक के विद्यार्थियों के साथ-साथ, जयपुर के लोकल लोगों में इसे लेकर खासा उत्साह दिखाई दे रहा हैं.

सुमत प्रकाश जी सुबह सैद्धांतिक विषयों पर चर्चा करते हैं, दोपहर में छात्रों के लिए जनरल बातों की शिक्षा व शाम को लेश्याओं के आधार से प्रवचन कर रहे हैं. आपकी शैली सुनकर लोग अपने निकटतम सम्बन्धी व घरवालों को ला रहे हैं ताकि उन्हें भी तत्त्व की रूचि लग सके.

ऐसे अद्भुत संगम के मिल जाने से सभी अपने आप को भाग्यशाली महसूस कर रहे हैं. कुल मिलाकर लगभग ५०० लोग इसका प्रतिदिन सुबह-शाम लाभ ले रहे हैं और निरंतर ३ दिनों तक और लेते रहेंगे.

आप भी घर बैठे लाइव इन मार्मिक प्रवचनों का लाभ लीजिये!!

Tuesday, January 26, 2010

पतंग उड़ाने का विरोध....


टोडरमल स्मारक के विद्यार्थियों ने इस साल अन्नाजी और बड़े दादा जी की प्रेरणा से मकर संक्रांति पर पतंग न उड़ाने का संकल्प लिया। क्योंकि इसके महीन धागे से कई पक्षियों की जान चली जाती है।

स्मारक के विद्यार्थी सर्वज्ञ भारिल्ल के नेतृत्व में स्टेच्यु सर्कल पर पतंग उड़ाने का विरोध प्रदर्शन भी किया गया। जिसे कई टीवी चैनल ने कवर किया।

इसके आलावा स्मारक के ही भूतपूर्व विद्यार्थी जिनेन्द्र शास्त्री ने उदयपुर में चीनी धागों के विरोध में एक विशाल प्रदर्शन किया। चीनी धागा काफी धारदार और पक्षियों के लिए घातक होता है। हमारी ब्लॉग टीम इनके कार्यों की सराहना करती है।

अजीब आदतें

साँस लेना भी कैसी आदत है
जीये जाना भी क्या रवायत है
कोई आहट नहीं बदन में कहीं
कोई साया नहीं है आँखों में
पाँव बेहिस हैं, चलते जाते हैं
इक सफ़र है जो बहता रहता है
कितने बरसों से, कितनी सदियों से
जिये जाते हैं, जिये जाते हैं


आदतें भी अजीब होती हैं....

गुलज़ार 

स्मारक रोमांस - पार्ट 3

(इसे पढने से पहले स्मारक रोमांस पार्ट- और पड़े।)
भाई दुनियादारी को समझने का बस एक ही सहारा हुआ करता था स्मारक में- वो था अखवार। रूम में रहने वाले चारों सदस्य बराबरी से पैसे मिलाकर इसे बुलवाते थे, लगभग १५ रुपये महीने हर लड़के का खर्च पड़ता होगा। लेकिन अखवार मंगवाने वाले लोग अपने को, मानो ५० गाँव का सरपंच समझते थे। कोई बाहर का आदमी यदि अखवार पढने जाये तो ऐसे घूरा करते थे मानो भंगी रूम में घुस आया हो। एक अखवार को १०-१० आदमी पड़ा करते थे, बेचारा अखवार भी अपने पर होने वाले इस जुर्म की शिकायत consumer forum में कराने की सोचता होगा। अखवार पढने का शबाब कुछ ऐसा होता कि कौनसी कक्षा में जाना है ये भी याद रहता था।

जिंदगी का अपना ही एक अलग मज़ा था। रात १० बजे के बाद होने वाली बातों का तो क्या कहना, -१० लोगो का समूह मिलकर वो शमा बांधते कि लगता कभी सूरज ही निकले, कभी रात ही ढले। हर मुद्दे पे चर्चा होती और कोई शेखी बघारने में पीछे रहता था। कभी भूत-पिशाच की, कभी खेलों की, तो कभी कुछ ऐसी जिनका ज़िक्र में यहाँ नहीं कर सकता और कुछ देर बाद आत्मा-परमात्मा के तात्विक मुद्दों पर भी नज़र डाल ली जाती। इसी बीच कोई रईस दोस्त केले के चिप्स खिलाने का प्रस्ताव रख देता-तो शमा और ही हसीन हो जाता था। केले की चिप्स प्रायः हररोज़ का रात्रि भोज हुआ करती थी। जिसे कई बार मित्र गण छुप-छुपकर भी खाया करते थे।

हर क्लास में एक लड़का ऐसा जरूर होता था जिसे देख लगता था की यदि ज्यादा धार्मिक होने से ये हालत होती है तो भैया अपन बिना धर्म के ही बढ़िया। घंटों मंदिर में बैठे रहना, अपने इष्ट-मित्रों को नसीहतें देते रहना, मटमैले से कुरते पहने रहना। आँख बंद कर अकेले ही कुछ कुछ बड़-बढ़ाते रहना। उस अद्वितीय बन्दे को प्रायः ब्रह्मचारी कहकर संबोधित किया जाता था। और स्मारक का ये इतिहास रहा है कि सबसे ज्यादा आधुनिकता का रंग आगे चलकर उस ब्रह्मचारी पे ही चढ़ा है। खैर जो भी हो लोगो को तो मज़े करने के लिए एक नमूना मिल ही जाता था।

कॉलेज जाने का हमारा सफ़र भी बढ़ा रंगीन हुआ करता था। लगभग १२ किलोमीटर दूर तक के सफ़र को पूरा करने में गाड़ी ३०-४० मिनट का समय लेती थी। और इन ३०-४० मिनटों में हर कोई अपने-अपने ढंग से दिल कि भड़ास निकल लेता था- कोई नाच के, कोई गा के तो कभी-कभी थोडा लड़-झगड़ के भी। रास्तों में चलने वाले लोगों को परेशान करना भी मज़ेदार होता था। ड्राइवर जब गाड़ी को अपने अंदाज में मोढ़ता तो बरबस ही मुंह से द्विअर्थी संवाद निकल जाता "क्या 'मोढी' है यार"

कॉलेज में भी बमुश्किल - पीरियड अटेंड किये जाते होंगे। उन चार-पांच घंटों के मनोरंजन का पहले से ही पूरा इंतजाम करके रखा जाता था। कोई बैट रखकर कॉलेज आता, जिससे क्रिकेट खेला जा सके तो कोई अपने बस्ते में सोने के लिए किताबों कि जगह दरी ही धरके ले आता और कॉलेज के सामने स्थित निर्माणाधीन मंदिर में डेरा डालकर बंजारों कि भांति सो जाया करता। मनोरंजन के लिए एक और साधन भी था कॉलेज के पास, जी हाँ एक होम विडियो, जहाँ रुपये या रुपये कि दर से सिनेमा देखा जाता था। टिकट रेट लोगों कि तादाद के अनुसार कम या ज्यादा हुआ करते थे। दरअसल पास में ही एक चाय कि कैंटीन वाला था जो दुकान के अन्दर दर्शकों कि मांग पर अलग-अलग फिल्मों का टीवी पर प्रदर्शन किया करता था। फिल्म देखने को लेकर भी काफी तनातनी चला करती थी-किसी को बोलीवुड की फिल्म देखना होती तो किसी को होलीवुड की। यहाँ भी सीनियर्स कि दादागिरी बरक़रार रहती थी। खैर पहले तो सब अजीब लगता पर धीरे-धीरे सब जिंदगी का हिस्सा बनता चला गया। घटनाये अभी और भी है, स्मारक रोमांस जारी है..........
(प्रतिक्रियाएं ज़रूरी है....)

Tuesday, January 19, 2010

टोडरमल स्मारक में सुमत प्रकाशजी.....

पंडित टोडरमल स्मारक में विद्यार्थियों के ज्ञान-विज्ञानं के लिए नित नए-नए विद्वानों को बुलाया जाता रहता है। इसी कड़ी में अब ब्र. सुमत्प्रकाश जी २० जनवरी को स्मारक की धरा पर पधार रहे है। वे वहां लगभग ८ दिनों तक विद्यार्थियों को ज्ञानदान देंगे।
सुमत प्रकाशजी लगभग ९ वर्ष बाद स्मारक की धरा पर पधार रहे हैं। इस कारण विद्यार्थियों में उनको लेकर खासा उत्साह है। इस दौरान सुमत प्रकाश जी के तीन समय प्रवचनों एवं कक्षाओं का लाभ विद्यार्थियों को मिलेगा।