आज के बदलते परिवेश में सबसे बड़ी समस्या यही है की जैसे-जैसे नवीन अविष्कारों को उदय हुआ और अनेक सुविधा पूर्ण उपकरण हमे प्राप्त हुए तभी से हमारी भावनाए संवेदनाये संचेतनाये कहाँ काल कवलित हो गई पता नहीं ,अब हमें किसी दुखयारे का दर्द देख कर दर्द महसूश नहीं होता अब हमे पडोसी की तकलीफ अपनी नहीं लगती इतना ही नहीं अब तो हमे अपनों का दर्द भी अपना नहीं लगता क्यूंकि अब हम सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में सोचते है हमे सिर्फ अपने आप से ही मतलब है सारी दुनिया के लिए मै हो सकता हूँ पैर मै तो सिर्फ अपने लिए हूँ मुझे अब किसी के दर्द से कोई वास्ता नहीं ..सच ही है जब जब स्वार्थ वृत्ति का चश्मा इन्सान की आँखों पर होता है,तब उसे सिर्फ वो खुद ही दीखता है वो इतना भावनाशुन्य हो जाता है की उसे खून के रिश्ते वालो का खून बहते हुए देखकर भी दुःख नहीं होता !
पर शायद आज यह सब लोगो को अपनी तरक्की मै बाधा लगती है यदि तुम भावुक या दयालु हो तो लोगो को लगता है की तुम कभी भी सफल नहीं सकते क्युकी सफल होने के लिए उनके अनुसार खुदगर्ज और संवेदनहीन होना पड़ता है ,क्यूंकि तभी तो गरीबो का गला काट कर तुम अपना पेट भर पाओगे .... पर सच में यथार्त तो यही है की यदि तुम हमेशा अपने पेट और पेटी के बारे मै सोचते रहोगे तो कभी भी जिन्दगी मै खुश नहीं रह पाओगे और भावनाओ के बिना इन्सान इन्सान हो हो नहीं सकता इन्सान उसे ही कहा जाता जो दुसरे इन्सान को समझे पर आज तो इन्सान सिर्फ अपने को ही समझता है ,और शायद इसीलिए वह सिर्फ अपने भले के लिए ही सोचता है और वह भी दुसरो का गला कट कर भी वह इसे अंजाम देता है ...संवेदनहीन व्यक्ति अपनी ख़ुशी के लिए ना जाने कितने लोगो की ख़ुशी की बलि चड़ा देता है ,क्यूंकि वह स्वार्थान्ध है उसे दुसरो के अच्छे बुरे से कोई मतलब नहीं है ,वह तो अपने आशियाने भी लोगो की कब्र पर बनाता है. क्या ऐसी खुशी का आनंद वह ले पता होगा या उसका दिल बार बार उसे दुतकारता नहीं होगा ,पर शायद उनका मन भी इतना कलुषित हो जाता है की उसे भी लोगो के आशुं देख कर आनंद आने लगता है सच में लोग कितने संवेदनहीन हो सकते है ..पर्सियन इस्लामिक मान्यता के अनुसार मानव के मनोभावों में जन्म से ही एक शैतान का वास होता है, जिसके साथ उसकी कशमकस जिन्दगी भर चलती रही है, पर उसे अपनी स्वशक्ति या आत्मबल के द्वारा सुधारा या उससे बचा जा सकता है पर जो लोग उसे नहीं सम्हाल पाते वह ही दानववत कार्य करते है !
कुछ दिनों पहले बहुत सी ऐसी बाते संवेदन हीनता की सामने आई जिसने ह्रदय को झाक्जोर दिया की इन्सान इतनी भी इंसानियत खो सकता है की पशु भी उसे देखे तो वह भी शर्मा जाये ..पर इन्सान को कोई फर्क नहीं पड़त क्यूंकि उसके अवचेतन मन पर तो उसी दानव का राज है और उसी की कटपुतली बनकर जीवन जिए जा रहा है . अब लोगो के अंशु उसे नहीं दिखते, चीखते चिल्लाते लोग नजर नहीं आते, बेबस और मजबूर ओरते , भीख मांगते बच्चे नजर नहीं आते, उनकी आँखों में थोड़ी सी दया की उम्मीद नजर नहीं अति वो माँ का भीगा आंचल दिखाई नहीं पड़ता और पिता के झुके हुए कंधे दिखाई नहीं देते जो चीख - चीख कर दया द्रष्टि चाहते है और ना जाने कितने निर्बल लोग दया की भीख के भूखे होकर उसके सामने खड़े होते है पर शायद उसे कुछ दिखाई नहीं देता कुछ सुनाई नहीं देता. संवेदना का कतरा तक उसके ह्रदय में नहीं है जो लोगो की मजबूरियों को समझ सके और उसे उसके कर्तव्यों और जिम्मेदारियों का बहन करा सके !
अब लोगो का मन नहीं भीगता अब लोग दुसरो के गम में नहीं गमगीन नहीं होते यदि किसी के जनाजे में भी उन्हें जबरदस्ती जाना पड़ जाये तो वहा भी तनिक ह्रदय नहीं पसीजता और उन्हें जरा भी नहीं लगता की एक दिन उसकी भी तो मौत होनी है , पर शायद अब उसे कुछ भी दिखाई सुनाई नहीं पड़ता न तो अब गीता के उपदेश उस पर कुछ फर्क डालते है ,और न ही गुरुजनों और माँ बाप की सलाह कुछ कारगर होती है क्यूंकि अब उसकी संवेदनाये दम तोड़ चुकी है, और इतिहास गबाह है. जब जब इन्सान ने इंसानियत खोई है तब तब उसका सर्वनाश हुआ चाहे वह रावन कंस हो या हिटलर सब को अकाल मौत मरना पड़ा है, और मरने के बाद भी उन्हें रोज रोज लोगो द्वारा उनकी बुराई करके मारा जाता है इसलिए कहा जाता है की अच्छा इन्सान तो एक बार मरता है फिर भी लोगो के दिलो मै हमेशा जिन्दा रहता है परन्तु संवेदनहीन मनुष्य रोज रोज मरा करता है और मरने के बाद भी उसे मुक्ति नहीं मिल पाती!
v अब भी समय है खुद का वजूद खुद में खोजने का क्यूंकि यदि देर हुई तो खुद से भी नफरत हो जाएगी और ऐसी भयाभय और अवसाद ग्रस्त मौत होगी की जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती इसलिए मानव स्वाभाव को जानो पहचानो और संवेदनाओ संचेतानो के साथ जीवन जिओ ..और ऐसी सफलता का मोह त्याग दो जिसका सूत्रपात किसी की ख़ुशी दफनाने से होता हो और अपनी इंसानियत को दांव पर रखना पड़ता हो .क्यूंकि सफलता ख़ुशी के लिए होती है और दुसरो को खुश रख कर भी खुश रहा जा सकता है इसलिए ऐसा कार्य करो जिससे तुम्हारे अन्दर के मनोभावों में प्रेम स्नेह की धरा प्रभावित हो और सुंदर जीवन का सृजन हो और "वसुधैव कुटुम्बकम " की तर्ज पर पूरी की पूरी कायनात मै सोहार्द ख़ुशी आन्नद हो और धरती पर जन्नत का माहोल बन जाये !