सब लोग जानते है कि मेरा घर जला है ,बस इतना याद रखना इसमें भी कुछ भला है
प्रारंध्र है या संचित मुझको पता नहीं है, जितना बड़ा था लोटा उतना ही जल भरा है
पतझड़ के पीले पत्ते कहते सदा यही है, आएगा बसंत फिर से मौसम बदल रहा है
जीना पड़ेगा तुमको हर हाल मे ये इंसा,हर दिन है महा भारत हर रात कर्बला है
मांगी थी भीख तुमने रोते हुए जीने कि वो जिंदगी क्या देगा , मोतों में जो पला है
सुख जाते -जाते बोला दुःख से ये बात कहना , वो भी नहीं रहेगा ऐसा ही सिलसिला है
मेरी चिता पे आकर कुछ लोग ये कहेंगे सचमुच मरा है"मानव " क्या ये भी चुटकुला है
अर्पित जैन "मानव"
2 comments:
this is fact all is not well but people is all is well it funny.......................
mrigendra jain
good arpit
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