हमारा स्मारक : एक परिचय
Friday, April 30, 2010
पूरे भारत में शुरू हुआ शिक्षण शिविरों का दौर
शिविर का नाम शिविर आयोजन शिविर स्थान शिविर दिनांक शिविर संयोजक
स्थान
अमरमऊ शिविर अमरमऊ 20 22 से 29 मई २०१० अमरमऊ मुमुक्षु मंडल
सिलवानी शिविर सिलवानी 35 01 से 10 मई 10 समकित शास्त्री
आशीष शास्त्री ,सिलवानी
नौगाँव शिविर नौगाँव 20 11 से 19 मई 10 राहुल शास्त्री,
मोहित शास्त्री नौगाँव
इंदौर शिविर इंदौर 1500 02 से 11 मई १० रितेश शास्त्री सनावद
(बच्चे एक ही इंदौर मुमुक्षु मंडल
स्थान पर )
विदर्भ शिविर नागपुर 51 12 से 20 जून 10 नागपुर मुमुक्षु मंडल
भिंड शिविर भिंड 101 -------- भिंड मुमुक्षु मंडल
द्रोणागिर शिविर द्रोणागिर 25 --------- ----------
प्रशिक्षण शिविर देवलाली नासिक 3000 लोग 11 मई से प्रारंभ ---------
Thursday, April 29, 2010
Wednesday, April 28, 2010
सुविधाओं की कीमत
पिछले सौ सालों में मानव और समाज की गति की दिशा के बारे में विचार करता हूँ तो पाता हूँ कि यह केवल सुविधा की ओर दौड़ा जा रहा है. पिछले सौ सालों में हुई खोजों और अविष्कारों पर नज़र डालें तो पाएंगे कि वाशिंग मशीन और ड्रायर, डिशवाशर, मोटरगाड़ियां, हवाई जहाज, टीवी, माइक्रोवेव, कम्प्युटर, ई-मेल, इन्टरनेट, फास्ट फ़ूड, लंच पैक्स और ऐसी हजारों चीज़ों ने हमें आधुनिक तो बनाया पर बेहद सुविधाभोगी भी बना दिया.
किसी और बात से भी अधिक हमारा समाज सुविधा पर आश्रित है और उसी पर जीता है. इस सुविधा की क्या कीमत चुकाते हैं हम?
ग्लोबल वार्मिंग. कहते हैं कि हमारे सुविधाभोगी व्यवहार ने ही ग्लोबल वार्मिंग रुपी दैत्य को जन्म दिया है जो देर-सबेर पृथ्वी को निगल ही जाएगा. ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिए जो उपाय बताये जा रहे हैं वे सुविधा को और भी सुप्राप्य और सस्ती बना देंगे जैसे विद्युत् चालित मोटर वाहन, स्वच्छ ऊर्जा, स्मार्ट फोन, ऑर्गेनिक फ़ूड… ऐसे में मुझे लग रहा है कि हमें अपने सुविधा के प्रति अपने प्रेम पर पुनः विचार करना चाहिए.
मोटापे की महामारी का जन्म भी सुविधाभोगी बनने का ही नतीजा है. फास्ट फ़ूड, माइक्रोवेव फ़ूड, रेडी-टु-ईट पैक्ड फ़ूड के साथ ही ऐसे भोज्य पदार्थ जिनमें कृत्रिम फ्लेवर और प्रोसेसिंग एजेंट मिलाये जाते हैं वे खाने में इतने एंगेजिंग और हलके होते हैं कि उनकी आवश्यक से अधिक मात्रा पेट में पहुँच जाती है. बहुत बड़ा तबका इन भोज्य पदार्थों को अपने दैनिक भोजन का अंग बना चुका है. लोगों के पास समय कम है और अपना खाना खुद बनाना उनके लिए सुविधाजनक नहीं है. मुझे दिल्ली में रेड लाईट पर रुकी गाड़ियों में जल्दी-जल्दी अपना नाश्ता ठूंसते कामकाजी लोग दिखते हैं. चलती गाड़ी में सुरुचिपूर्ण तरीके से थाली में परोसा गया खाना खाना संभव नहीं है और ऐसे में सैंडविच या पराठे जैसी रोल की हुई चीज़ ही खाई जा सकती है. कभी-कभी तो चलती गाड़ी में बैठी महिला अपने पति को खाना खिलाते हुए दिख जाती है. यह सब बहुत मजाकिया लगता है पर आधुनिक जीवन की विवशतापूर्ण त्रासदी की ओर इंगित करता है. आराम से खाने का वक्त भी नहीं है!
सभी लोग पोषक भोजन करना चाहते हैं पर ऐसा जो झटपट बन जाये या बना-बनाया मिल जाये. पहले फुरसत होती थी और घर-परिवार के लोग बैठे-बैठे बातें करते हुए साग-भाजी काट लेते थे. आजकल सब्जीवाले से ही भाजी खरीदकर उसी से फटाफट कटवाने का चलन है. भाजी के साथ इल्ली और कीड़े-मकोड़े कटते हों तो कटने दो. खैर, जब टीवी पर सीरियल न्यूज़ देखते समय खाने से पेट का आकार बढ़ता है तो ज्यादा कुशल मशीनें बनाई जाती हैं जो कसरत को बेहद आसान बना दें सबसे कम समय में. यदि आप घर से बाहर दौड़ नहीं सकते तो घर के भीतर ट्रेडमिल पर दौडिए. ट्रेडमिल पर दौड़ना नहीं चाहते तो मोर्निंग वाकर भी उपलब्ध है. यह भी नहीं तो स्लिमिंग पिल्स, यहाँ तक कि स्लिमिंग चाय भी मिल जाएगी. सबसे जल्दी दुबला होना चाहते हों तो अपने पेट में मोटी नालियाँ घुसवाकर सारी चर्बी मिनटों में निकलवा लीजिये. घबराइये नहीं, इसमें बिलकुल दर्द नहीं होता और आप उसी दिन उठकर काम पर भी जा सकते हैं!
मैं खुद तो कसरत नहीं करता इसलिए मुझे किसी को पसीना बहानेवाली कसरत करने का लेक्चर नहीं देना चाहिए. लेकिन मैं लगभग रोज़ ही सामान लाने के बहाने लंबा चलता हूँ, लिफ्ट की जगह सीढ़ियों का इस्तेमाल करता हूँ, अपने कपडे खुद ही धोता हूँ… इसमें बहुत कसरत हो जाती है. असली कसरत तो वही है जिसमें कमरतोड़ मेहनत की जाय और जिसे करने में मज़ा भी आये. ये दोनों ही होना चाहिए. और ऐसी कठोर चर्या के बाद खुद ही अपना खाना बनाकर खाने में जो मजा है वह पिज्जा हट या डोमिनोज को फोन खड़खडाने में नहीं है. एक बात और, सादा और संतुलित भोजन बनाने में अधिक समय नहीं लगता है और उसे चैन से बैठकर खाने का आनंद ही क्या!
मोटर कार भी आवागमन का बहुत सुविधाजनक साधन है हांलाकि किश्तें भरने, सर्विस करवाने, साफ़ करने, पेट्रोल भरवाने, धक्का लगाने, ट्रेफिक में दूसरों से भिड़ने, और पार्किंग की जगह ढूँढने में कभी-कभी घोर असुविधा होती है. इस सुविधा का मोल आप अपनी और पर्यावरण की सेहत से चुका सकते हैं जो शायद सभी के लिए बहुत मामूली है.
यदि आप बारीकी से देखें तो पायेंगे कि सुविधाएँ हमेशा हिडन कॉस्ट या ‘कंडीशंस अप्लाई’ के साथ आती हैं. कभी-कभी ये हिडन कॉस्ट तीसरी दुनिया के देश भुगतते हैं या पर्यावरण को उनका हर्जाना भरना पड़ता है. उनका सबसे तगड़ा झटका तो भविष्य की पीढ़ियों को सहना पड़ता है लेकिन इसके बारे में भला क्यों सोचें? ये सब तो दूसरों की समस्याए हैं!
मैंने कभी यह कहा था की हम सबको अस्वचलित हो जाना चाहिए. इसपर विचार करने की ज़रुरत है. चिलचिलाती धुप में बाल्टीभर कपड़े उठाकर उन्हें छत में तार पर टांगकर सुखाने का आइडिया बहुतों को झंझट भरा लग सकता है पर इसमें रोमानियत और वहनीयता है. घर के किचन गार्डन में ज़रुरत भर का धनिया या टमाटर उगा लेना किसी को टुच्चापन लग सकता है पर मैं इसे बाज़ार में मिलनेवाले सूखे पत्तों और टोमैटो प्यूरी पर तरजीह दूंगा. पैदल चलना, सायकिल चलाना, और मैट्रो में जाना आरामदायक भले न हो पर मोटर गाड़ी में अकड़े बैठे रहने की तुलना में ज्यादा रोमांचक और चिरस्थाई है.
और हमारे दैनिक जीवन की ऐसी कौन सी असुविधाएं है जो वास्तव में हमारे लिए वरदान के समान हैं? मेरे पास केवल प्रश्न हैं, उत्तर नहीं।
(हिंदी जेन से साभार गृहीत )
Friday, April 16, 2010
शाकाहार नहीं है चांदी का वर्क!
Thursday, April 15, 2010
मेरे सपनों का स्मारक-पार्ट 1
आप सोच रहे होंगे मैं अनावश्यक ये चुटकुला क्यों सुना रहा हूँ जबकि इसका इसके टाइटल से भी कोई सम्बन्ध नही है। मैं एक चीज की ओर इसके माध्यम से आपका ध्यान खींचना चाह रहा हूँ कि किसी स्थान या किसी परिवेश में जाकर कोई परिवर्तन नही आते जबकि उस परिवर्तन के लिए खुद मैं जिजीविषा नही हो।
महज कपडे कैसे पहनना चाहिए या चेहरे और बालों को कैसे चमकाया जाता है यही सीखना तो समझदार हो जाना नही है, जबकि अन्तरंग में ही समझ विकसित न हुई हो। जिम में जाकर चर्बी घटाने से ही काम नही चलने वाला जब तक विचारों पर, मष्तिष्क पर चड़ी चर्बी नही हटेगी। दूसरों के सामने खुद की शेखी बघारने से, दूसरों की नज़रों में ऊपर चढ़ने से आप महान नहीं होंगे , जब तक आप खुद की नजरों में ऊँचा नही उठेंगे तब तक आप महान नही हो सकते। व्यापक दृष्टिकोण और गहराई से विचारने वाली सोच कों विकसित करना सबसे बड़ा कार्य है।
इन सारी बातो को अपने जीवन में लाकर ही सफल हुआ जा सकता है। इस भांति हर शास्त्री का हो सकना शायद सबसे बड़ी कामयाबी होगी। इस तरह से यदि हम तैयार हो सके तो जीवन में कभी हमें कोई कुंठा नही घेरेगी, हम इस बात को लेकर कभी तनावग्रस्त न होंगे कि हमने क्यों मैथ्स या कामर्स लेकर पढाई नही की, हम अक्सर अप्राप्त चीजों को पाने की फिक्र में प्राप्त चीजों का मज़ा नही ले पाते। हमें ये पता ही नही होता की स्मारक से हमें क्या मिला है, हमारी नसों में तैरने वाला आत्मबल आखिर कहाँ से आया है या क्या कारण है कि चरम तनाव के समय में भी अत्यधिक दुर्विचार हमारे ज़हन में नही आते। इन सारे प्रश्नों के जबाव यदि खोजे जाये तो निगाहों के सामने स्मारक तैरता नज़र आएगा।
हमारा जीवन हमेशा जीवन को बेहतर, और बेहतर बनाने के लिए है। जिसका मतलब हम जहाँ भी खड़े हैं हमें अब उससे आगे ही बढ़ना है, और काबिल होना है। ठहराव ही मृत्यु है। रुकने का तो कोई विकल्प ही नही है, निष्क्रियता का समृद्ध जीवन में कोई स्थान ही नही है। तो क्या किया जाना चाहिए खुद को बेहतर करने के लिए ? इसका उत्तर आप खुद से पूछे मै यदि इसका उत्तर दूंगा तो ये मेरा अपना नजरिया होगा, जिसे मैं थोपना नही चाहूँगा। लेकिन यदि मैं ये प्रश्न खुद से करूँ तो शायद इसका उत्तर होगा स्वाध्याय, अपने परिवेश की बेहतर समझ, उस परिवेश में बेहतर ढंग से जी सकने वाली योग्यताओं का विकास, और सच-संस्कार एवं धर्म पर दृढ विश्वास को कायम कर सकने वाली आस्था को पैदा करना।
दोपहर में चार-चार घंटे सोकर या रातों को असीमित गप्प करके शायद ये काम नही हो सकता। जब हम समय बरबाद कर रहे होते हैं तब हम थम जाते हैं पर समय तब भी चल रहा होता है। महान समय के साथ चलकर हुआ जा सकता है। महानता का आशय ये कतई नही है की हमारा खूब नाम हो जायेगा या हमारी जय-जयकार होने लगेगी। शोहरत कभी भी महानता का पैमाना नही होती। अनुशासन और सदाचरण वास्तविक महानता है जो कतई तालियों की अपेक्षा नही रखते।
बहरहाल मेरे सपनो में तैरता स्मारक और मेरे शास्त्री भाइयों की तस्वीर बहुत व्यापक है जिसे क्रम से आगे बढ़ाएंगे अभी के लिए इतना काफी....जीवन उद्देश्य पूर्ण बनायें क्योंकि "महान मस्तिष्कों में उद्देश्य होते हैं अन्य लोगों के पास सिर्फ इच्छाएं होती हैं"।
क्रमशः.........................................
Monday, April 12, 2010
Thursday, April 8, 2010
छोटी-छोटी मगर मोटी बातें ३
२.किसी वस्तु की कीमत उसकी चमक से नही, उसके प्रति चाहत से तय होती है।
३.जिसे हम प्रेम करते हैं उसके प्रति अनिष्ट की शंका बनी रहती है।
४.जहाँ भी मूल्य के स्तर और समीक्षा के मापदंड का प्रयोग हो, समझिये वही दर्शन है।
५.सफलता और हमारे बीच की वास्तविक दूरी हमारी दृष्टि ही होती है।
1.Beauty is power, a smile is it's swored.
2.Happiness is the interval between the periods of unhappiness.
3.Luck is what happens when preparations meats opportunity.
4.Good is not good when better is expected.
5.The will to prepare is more important than the will to win.
Wednesday, April 7, 2010
मनुष्यता
पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका संसार|
भोग लिप्सा आज भी लहरा रही उद्दाम;
बह रही असहाय नर कि भावना निष्काम|
लक्ष्य क्या? उद्देश्य क्या? क्या अर्थ?
यह नहीं यदि ज्ञात तो विज्ञानं का श्रम व्यर्थ|
यह मनुज, जो ज्ञान का आगार;
यह मनुज, जो सृष्टि का श्रृंगार |
छद्म इसकी कल्पना, पाखण्ड इसका ज्ञान;
यह मनुष्य, मनुष्यता का घोरतम अपमान
रामधारीसिंह "दिनकर"
Tuesday, April 6, 2010
Monday, April 5, 2010
Friday, April 2, 2010
परीक्षा का माहौल
Thursday, April 1, 2010
स्मारक में गूंजी भगवान महावीर की गूंज
वीर प्रभु के जयकारो से न केवल स्मारक भवन बल्कि पूरा जयपुर गूंज उठा,इस पावन प्रसंग पर स्मारक में दिन भर सत्य और अहिंसा के गीत गाये जाते रहे और रात्रि कालीन प्रवचन में भगवान् महावीर की शिक्षाओ पर विवेचन किया गया
वे वर्धमान महान जिन विचरे हमारे ध्यान में" .