हमारा स्मारक : एक परिचय
श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं।
विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें।
हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015
Friday, December 31, 2010
स्मारक कप के उदघाटन की झलकियाँ
शास्त्री अंतिम वर्ष द्वारा आयोजित स्मारक कप का उदघाटन हर्षोल्लास के साथ हुआ। एक और हर्ष की बात यह भी है कि इस बार प्रतियोगिता का यह पन्द्रहवां आयोजन है. प्रस्तुत हैं उसकी कुछ झलकियाँ -
Saturday, December 25, 2010
Wednesday, December 22, 2010
कांच की बरनी और दो कप चाय
जीवन में जब सबकुछ जल्दी-२ करने की इच्छा होने लगती है। सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है..और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ने लगे हैं...उस समय ये बोध कथा "कांच की बरनी और दो कप चाय " याद आती है-
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज उन्हें जिन्दगी का एक ख़ूबसूरत पाठ पढ़ाने जा रहे हैं। उन्होंने अपने साथ ली एक कांच की बरनी (जार) टेबल पे रखी और उसमे टेनिस की गेंद तब तक डालते रहे जब तक उस जार में एक भी गेंद के समा सकने की जगह नहीं बची। फिर उन्होंने छात्रों से पूछा की क्या बरनी भर गई?
आवाज आई- हाँ!!
फिर प्रोफ़ेसर साहब ने कुछ छोटे-२ कंकर उस बरनी में भरने शुरू किये...और वे कंकर भी बरनी में जहाँ-जहाँ जगह थी वहां समा गए। प्रो. साहब ने फिर पुछा क्या बरनी भर गई?
छात्रों की आवाज आई- हाँ!!
अब प्रो.साहब ने उस बरनी में रेत भरना शुरू किया...और देखते ही देखते वो रेत भी उस बरनी में समा गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे। प्रो.साहब ने फिर पुछा-अब तो बरनी भर गई ना?
इस बार सारे छात्रों की एक स्वर में आवाज आई- हाँ अब भर गई!!
प्रो.साहब ने टेबल के नीचे से २ कप निकालकर उसमे स्थित चाय को बरनी में उड़ेल दिया..बरनी में वो चाय भी जगह पा गई....
विद्यार्थी भौचक्के से देखते रहे!!!
अब प्रो.साहब ने समझाना शुरू किया- "इस कांच की बरनी को तुम अपनी जिन्दगी समझो...टेनिस की गेंदे सबसे महत्त्वपूर्ण भाग मतलब भगवान, परिवार, रिश्ते-नाते, स्वास्थ्य, मित्र, शौक वगैरा। छोटे कंकर मतलब नौकरी, कार, बड़ा मकान या अन्य विलासिता का सामान...और रेत का मतलब और भी छोटी-मोटी बेकार सी बातें, झगडे, मन-मुटाव वगैरा।
अब यदि तुमने रेत को पहले जार में भर दिया तो उसमे टेनिस की गेंद और कंकरों के लिए जगह नहीं रह जाती, यदि पहले कंकर ही कंकर भर दिए होते तो गेंदों के लिए जगह नहीं बचती, हाँ सिर्फ रेत जरुर भरी जा सकती।
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है यदि तुम छोटी-२ बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी उर्जा और समय उसमे नष्ट करोगे तो जीवन की मुख्य बातों के लिए जगह नहीं रह जाती। मन के सुख के लिए क्या जरुरी है ये तुम्हे तय करना है।
धर्म-अध्यात्म में समय दो, परिवार के साथ वक़्त बिताओ, व्यसन मुक्त रहकर स्वास्थ्य पर ध्यान दो कहने का मतलब टेनिस की गेंदों की परवाह करो। बाकि सब तो रेत और कंकर हैं....
इसी बीच एक छात्र खड़ा हो बोला की सर लेकिन आपने ये नहीं बताया कि 'चाय के दो कप क्या हैं?'
प्रोफ़ेसर मुस्कुराये और बोले मैं सोच ही रहा था कि किसी ने अब तक ये प्रश्न क्यूँ नहीं पूछा.....इसका उत्तर ये है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट क्यूँ ना लगे लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा बचा कर रखना चाहिए.........
क्यूंकि आगे बढ़ने की चाह में करीबी रिश्तों को भुला देना समझदारी नहीं है...करीबी मित्र के साथ बिताये चंद लम्हों का सुख इस चराचर जगत का उत्तम आनंद है...इस आनंद के लिए वक़्त बचाए रखिये................
Tuesday, December 21, 2010
"कविता"-तू ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर
तू ज़िन्दा है तो ज़िन्दगी की जीत में यकीन कर,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
सुबह औ' शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,
यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
"शैलेन्द्र"
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!
सुबह औ' शाम के रंगे हुए गगन को चूमकर,
तू सुन ज़मीन गा रही है कब से झूम-झूमकर,
तू आ मेरा सिंगार कर, तू आ मुझे हसीन कर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
ये ग़म के और चार दिन, सितम के और चार दिन,
ये दिन भी जाएंगे गुज़र, गुज़र गए हज़ार दिन,
कभी तो होगी इस चमन पर भी बहार की नज़र!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
हमारे कारवां का मंज़िलों को इन्तज़ार है,
यह आंधियों, ये बिजलियों की, पीठ पर सवार है,
जिधर पड़ेंगे ये क़दम बनेगी एक नई डगर
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
हज़ार भेष धर के आई मौत तेरे द्वार पर
मगर तुझे न छल सकी चली गई वो हार कर
नई सुबह के संग सदा तुझे मिली नई उमर
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
ज़मीं के पेट में पली अगन, पले हैं ज़लज़ले,
टिके न टिक सकेंगे भूख रोग के स्वराज ये,
मुसीबतों के सर कुचल, बढ़ेंगे एक साथ हम,
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
बुरी है आग पेट की, बुरे हैं दिल के दाग़ ये,
न दब सकेंगे, एक दिन बनेंगे इन्क़लाब ये,
गिरेंगे जुल्म के महल, बनेंगे फिर नवीन घर!
अगर कहीं है तो स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर!.... तू ज़िन्दा है
"शैलेन्द्र"
Saturday, December 18, 2010
Pandit Todarmal Smarak Trust
You can now become a fan of "Pandit Todarmal Smarak Trust" on facebook. Don't miss it!!
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http://http://www.facebook.com/pages/Pandit-Todarmal-Smarak-Trust/118201884889137
Thursday, December 9, 2010
Federation यात्रा: एक अभूतपूर्व अनुभव
श्री वीतराग विज्ञान यात्रा संघ इस साल अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है और बुंदेलखंड, दक्षिण भारत के तीर्थो के बाद अब मौका है २५ से ३१ दिसम्बर तक मालवा और निमाड़ के तीर्थ क्षेत्रों की यात्रा का| देश भर के लोगों को पूरे वर्ष भर इस यात्रा का इंतज़ार रहता है आखिर हो भी क्यूँ न? जब यह ४०० लोगों का चलता-फिरता मेला अपने कैप्टेन छोटे दादा और बड़े दादा के साथ किसी तीर्थ पर पहुचता है तो गाँव की हवा बदल जाती है. और फिर वहां के मंदिरों मे प्रवचन, पूजन, भक्ति आदि के कार्यक्रमों से सब आनंदित हो जाते है| यात्रा की व्यवस्थाओ के बारे मे सुनते-सुनते यदि आपके कान पक भी गए हो तो ज्यादा नहीं समझूंगा| वास्तव मे यात्रा की इन तय्यारिओं का श्रेय पंडित शुद्धात्म प्रकाश जी और पंडित पियूष जी शास्त्री को जाता है जिनके मैनेजमेंट के बिना यह यात्रा संघ शायद इस मुकाम पर नहीं पहुच पाता| इन्ही के साथ पंडित धर्मेन्द्र जी शास्त्री अपनी छोटी गुडिया के अधिक छोटे होने के कारण सम्मिलित नहीं हो पा रहे है| इतने सारे यात्रिओं की व्यवस्था के लिए हर बस मे रहने वाले विद्यार्थी विद्वान (लीडर) भी पूरे-पूरे धन्यवाद के पात्र है|
इस यात्रा के दौरान ली जा रही LIVE PHOTOS का मज़ा आप स्मारक के फेसबुक पेज पर देख सकते है जो यात्रा के दौरान निरंतर अपलोड की जाएगी!
इस यात्रा में मुंबई, देल्ही, कोलकाता, अहमदाबाद से लोग पधार रहे हैं| आशा करते है आप सभी की यात्रा मंगलमय हो|
Wednesday, December 8, 2010
लाख कोशिशो के बाद होगा सपना साकार ........
हाँ ,सच मै हमारा सपना साकार होने जा रहा है ...............
स्मारक के बो दिन कौन भूल सकता है जब चारो और एक ही नजारा रहता है एक ही बात की चर्चा होती है जब हम खाना , पीना सब भूल कर एक ही बात की चर्चा करते है ...........बस अब मेरे को और कहने की जरुरत नहीं है आप सब समझ ही गए होगे की मै किस बात की और आप का ध्यान आकर्षित कर रहा हूँ ...........जी हाँ स्मारक कप
स्मारक का ये समय एक उत्साह, उमंग और खुशियों से भरा होता है। जो विद्यार्थियों के मानसिक और शारीरिक क्षमताओं को प्रदर्शित करने के लिए एक मंच देता है। इन समस्त गतिविधियों में बात यदि स्मारक क्रिकेट कप की हो तो फ़िर कहना ही क्या ?वैसे इस दौरान तकरीबन १५ खेलों का आयोजन किया जाता है। लेकिन उमंग सिर्फ़ क्रिकेट कप को लेकर ही सबसे ज्यादा होती है। हर तरफ़ अगले दिन के मैच की चर्चा और रणनीतियां तय की जाती है। कई विवाद होते हैं तो कभी बात हाथ-पाई तक पे उतर आती है। कुल मिलाकर ये फुल मस्ती का टाइम होता है और ज़हन में सिर्फ़ जोश और उमंग साथ होती है।
पर किन्ही कारणो ये सब बंद होने जा रहा था स्मारक के वे सभी लोग जिन्होंने स्मारक कप देखा है और उसका अनुभव किया है वे सब ये नहीं चाहते थे की स्मारक कप बंद हो जाये इस बात को शास्त्री अंतिम वर्ष ने साकार नहीं होने दिया और एक बार फिर लाख कोशिशो के बाद होगा सपना साकार .......
२८ दिसम्बर से १ जनवरी २०११ तक
इस उमंगोत्सव में सभी वर्तमान विद्यार्थी तो भाग लेंगे ही साथ ही सभी भूतपूर्व विद्यार्थियों को भी आमंत्रण है। जिससे वे भी इस उल्लास में भागीदार बनकर अपनी यादें पुनः ताज़ा करें। यदि आप चाहते हैं एक बार फ़िर ख़ुद को ताज़ा महसूस करना तो आ जाइये स्मारक कप में हिस्सा लेने, ये निश्चित ही आपके उबाऊ और व्यस्त जीवन में आपको कुछ सुकून देने का काम करेगा।
इस दौरान स्मारक कप का पूरा व्यय शास्त्री अंतिम वर्ष उठाएगी यदि आप हमारा आर्थिक रूप से या किसी भी प्रकार से सहयोग करना चाहते है तो भी इन नम्बर्स पर कांटेक्ट कर सकते है ................
सौरभ जैन अमरमऊ - 9529839719
सचिन जैन भगवा -9694773876
सुदीप जैन अमरमऊ - 9785160164
विशेष जानकारी के लिएभी इन नम्बर्स पर कांटेक्ट कर सकते है ...............
स्मारक कप की सारी जानकारी एवं तथा फोटोस वीडीयो और स्कोर यहाँ लोड होता रहेगा ........
Monday, December 6, 2010
Friday, December 3, 2010
पीटीएसटी संचार : सफलता का एक वर्ष एक नज़र में!!!
कुछ प्रयास अपनी उम्मीदों से भी ज्यादा फल दे जाते हैं...इसकी बानगी देखना है तो हमारे ब्लॉग से अच्छा उदाहरण नही मिलेगा...महज टोडरमल स्मारक के विद्यार्थियों कों आपस में जोड़े रखने की भावना से शुरू किया गया ये ब्लॉग आज हिंदी चिट्ठाजगत के प्रमुख ब्लॉग में से एक है। हालाँकि आंकड़े सफलता का वास्तविक पैमाना नही होते लेकिन मजबूरन हमें कुछ आंकड़े बताना होंगे जो इसकी लोकप्रियता को खुद ब खुद जाहिर करते हैं-इनके चलते ही हमारे ब्लॉग ने महज एक साल में अपनी अच्छी खासी पहचान ब्लॉग के इस बड़े से संसार में बना ली...
पिछले एक वर्ष में हमने कुल ११८ पोस्ट इस ब्लॉग पर प्रकाशित की, जिनमे ओवरआल विसिटर्स की संख्या ४०००० के ऊपर दर्ज की गयी...सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पोस्ट 'स्मारक रोमांस पार्ट-१' रही जिसे ५५८ बार ओपन किया गया, वर्तमान में कुल ४८ followers हैं, अब तक लोगों द्वारा पोस्ट पर १९३ comments प्राप्त हुए, ब्लॉग से कुल १६ लेखक अब तक जुड़े हुए हैं और ये संख्या सतत जारी है...ब्लॉग ने लोकप्रिय श्रृंखला स्मारक रोमांस और मेरे सपनो का स्मारक प्रकाशित की जिसने हर तरफ वाहवाही लूटी...३ बार ब्लॉग की पोस्ट दैनिक अखवारों में प्रकाशित हुई जिनमे राष्ट्रीय समाचार पत्र 'जनसत्ता' भी शामिल है...ब्लॉग की लोकप्रियता के चलते हमें ब्लोगर्स मीट में शिरकत करने का आमंत्रण भी मिला। इस तरह इन कुछ उपलब्धियों के साथ हम अपने इस लघुतम प्रयास के साथ आगे बढ़ रहे हैं....लेकिन ये उपलब्धियां सिर्फ हमारे कारन नही, इसका कारण आप सभी का सतत मिलने वाला प्यार है...जो हमें नित नया करते रहने के लिए प्रेरित करता रहता है....अब हम चाहेंगे कि हमारे इस कारवां में महज स्मारक परिवार ही नही बल्कि हर तत्वरसिक, शास्त्रिवंधू चाहे वो मंगलार्थी हो, आत्मार्थी हो, कोटा-बांसवाडा-सोनगढ़-सोनागिरी या जहाँ कहीं से भी जुड़े हो, उसे हम हमारे साथ शामिल करना चाहेंगे एवं आपकी सक्रिय सहभागिता चाहेंगे....क्योंकि आध्यत्मिक जमीन पर हम सब एक हैं।
साथ ही मैं कुछ लोगों को शुक्रिया अदा किये वगैर अपनी बात समाप्त नही कर सकता...जिसमे सबसे पहले स्मारक के हमारे अध्यापकगण बड़े दादा, छोटे दादा को याद करूँगा जिनका आशीष सदा हमारे साथ हैं...आदरणीय शांतिजी भाईसाहब, पीयूषजी, धर्मेंद्रजी, प्रवीणजी का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने हमारे इस कृत्य के लिए हमारा सतत उत्साहवर्धन किया। मेरे कुछ अग्रज जैसे मनीषजी 'रहली', आशीषजी 'टीकमगढ़', अभिषेकजी 'सिलवानी' संभवजी को धन्यवाद दूंगा जिन्होंने नियमित ब्लॉग प़र प्रतिक्रिया जाहिर कर या फोन से मेरे कृत्य कि सराहना की। इसके आलावा चेतन 'बक्सवाहा', मेरे आत्मीय मित्र रोहन रोटे, प्रिय अनुज सर्वज्ञ भारिल्ल को भी धन्यवाद दूंगा जिनकी सक्रिय सहभागिता ने ब्लॉग को इस मुकाम तक पहुचाया...साथ ही कुछ अनुजो का असीम स्नेह भी सतत हमारे साथ रहा जिनमे तन्मय, अभिषेक, सजल, राहुल, एकत्व, सुदीप, सौरभ प्रमुख हैं....साथ ही उन तमाम शास्त्री मित्रों का जो निरंतर हमारे प्रयासों का अनुमोदन करते हैं और मेरे दिल में हमेशा अपना घर बनाकर बैठे हुए हैं...भले उनका जिक्र में यहाँ न कर सकुं...क्योंकि प्रेम का संसार अगाध है और शब्द सीमित...
पिछले एक वर्ष में हमने कुल ११८ पोस्ट इस ब्लॉग पर प्रकाशित की, जिनमे ओवरआल विसिटर्स की संख्या ४०००० के ऊपर दर्ज की गयी...सर्वाधिक पढ़ी जाने वाली पोस्ट 'स्मारक रोमांस पार्ट-१' रही जिसे ५५८ बार ओपन किया गया, वर्तमान में कुल ४८ followers हैं, अब तक लोगों द्वारा पोस्ट पर १९३ comments प्राप्त हुए, ब्लॉग से कुल १६ लेखक अब तक जुड़े हुए हैं और ये संख्या सतत जारी है...ब्लॉग ने लोकप्रिय श्रृंखला स्मारक रोमांस और मेरे सपनो का स्मारक प्रकाशित की जिसने हर तरफ वाहवाही लूटी...३ बार ब्लॉग की पोस्ट दैनिक अखवारों में प्रकाशित हुई जिनमे राष्ट्रीय समाचार पत्र 'जनसत्ता' भी शामिल है...ब्लॉग की लोकप्रियता के चलते हमें ब्लोगर्स मीट में शिरकत करने का आमंत्रण भी मिला। इस तरह इन कुछ उपलब्धियों के साथ हम अपने इस लघुतम प्रयास के साथ आगे बढ़ रहे हैं....लेकिन ये उपलब्धियां सिर्फ हमारे कारन नही, इसका कारण आप सभी का सतत मिलने वाला प्यार है...जो हमें नित नया करते रहने के लिए प्रेरित करता रहता है....अब हम चाहेंगे कि हमारे इस कारवां में महज स्मारक परिवार ही नही बल्कि हर तत्वरसिक, शास्त्रिवंधू चाहे वो मंगलार्थी हो, आत्मार्थी हो, कोटा-बांसवाडा-सोनगढ़-सोनागिरी या जहाँ कहीं से भी जुड़े हो, उसे हम हमारे साथ शामिल करना चाहेंगे एवं आपकी सक्रिय सहभागिता चाहेंगे....क्योंकि आध्यत्मिक जमीन पर हम सब एक हैं।
साथ ही मैं कुछ लोगों को शुक्रिया अदा किये वगैर अपनी बात समाप्त नही कर सकता...जिसमे सबसे पहले स्मारक के हमारे अध्यापकगण बड़े दादा, छोटे दादा को याद करूँगा जिनका आशीष सदा हमारे साथ हैं...आदरणीय शांतिजी भाईसाहब, पीयूषजी, धर्मेंद्रजी, प्रवीणजी का शुक्रगुजार हूँ जिन्होंने हमारे इस कृत्य के लिए हमारा सतत उत्साहवर्धन किया। मेरे कुछ अग्रज जैसे मनीषजी 'रहली', आशीषजी 'टीकमगढ़', अभिषेकजी 'सिलवानी' संभवजी को धन्यवाद दूंगा जिन्होंने नियमित ब्लॉग प़र प्रतिक्रिया जाहिर कर या फोन से मेरे कृत्य कि सराहना की। इसके आलावा चेतन 'बक्सवाहा', मेरे आत्मीय मित्र रोहन रोटे, प्रिय अनुज सर्वज्ञ भारिल्ल को भी धन्यवाद दूंगा जिनकी सक्रिय सहभागिता ने ब्लॉग को इस मुकाम तक पहुचाया...साथ ही कुछ अनुजो का असीम स्नेह भी सतत हमारे साथ रहा जिनमे तन्मय, अभिषेक, सजल, राहुल, एकत्व, सुदीप, सौरभ प्रमुख हैं....साथ ही उन तमाम शास्त्री मित्रों का जो निरंतर हमारे प्रयासों का अनुमोदन करते हैं और मेरे दिल में हमेशा अपना घर बनाकर बैठे हुए हैं...भले उनका जिक्र में यहाँ न कर सकुं...क्योंकि प्रेम का संसार अगाध है और शब्द सीमित...
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