हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Wednesday, December 22, 2010

कांच की बरनी और दो कप चाय


जीवन में जब सबकुछ जल्दी- करने की इच्छा होने लगती है। सब कुछ तेजी से पा लेने की इच्छा होती है..और हमें लगने लगता है कि दिन के चौबीस घंटे भी कम पड़ने लगे हैं...उस समय ये बोध कथा "कांच की बरनी और दो कप चाय " याद आती है-
दर्शनशास्त्र के एक प्रोफ़ेसर कक्षा में आये और उन्होंने छात्रों से कहा कि वे आज उन्हें जिन्दगी का एक ख़ूबसूरत पाठ पढ़ाने जा रहे हैं। उन्होंने अपने साथ ली एक कांच की बरनी (जार) टेबल पे रखी और उसमे टेनिस की गेंद तब तक डालते रहे जब तक उस जार में एक भी गेंद के समा सकने की जगह नहीं बची। फिर उन्होंने छात्रों से पूछा की क्या बरनी भर गई?
आवाज आई- हाँ!!
फिर प्रोफ़ेसर साहब ने कुछ छोटे- कंकर उस बरनी में भरने शुरू किये...और वे कंकर भी बरनी में जहाँ-जहाँ जगह थी वहां समा गए। प्रो. साहब ने फिर पुछा क्या बरनी भर गई?
छात्रों की आवाज आई- हाँ!!
अब प्रो.साहब ने उस बरनी में रेत भरना शुरू किया...और देखते ही देखते वो रेत भी उस बरनी में समा गई, अब छात्र अपनी नादानी पर हँसे। प्रो.साहब ने फिर पुछा-अब तो बरनी भर गई ना?
इस बार सारे छात्रों की एक स्वर में आवाज आई- हाँ अब भर गई!!
प्रो.साहब ने टेबल के नीचे से कप निकालकर उसमे स्थित चाय को बरनी में उड़ेल दिया..बरनी में वो चाय भी जगह पा गई....
विद्यार्थी भौचक्के से देखते रहे!!!
अब प्रो.साहब ने समझाना शुरू किया- "इस कांच की बरनी को तुम अपनी जिन्दगी समझो...टेनिस की गेंदे सबसे महत्त्वपूर्ण भाग मतलब भगवान, परिवार, रिश्ते-नाते, स्वास्थ्य, मित्र, शौक वगैरा। छोटे कंकर मतलब नौकरी, कार, बड़ा मकान या अन्य विलासिता का सामान...और रेत का मतलब और भी छोटी-मोटी बेकार सी बातें, झगडे, मन-मुटाव वगैरा।
अब यदि तुमने रेत को पहले जार में भर दिया तो उसमे टेनिस की गेंद और कंकरों के लिए जगह नहीं रह जाती, यदि पहले कंकर ही कंकर भर दिए होते तो गेंदों के लिए जगह नहीं बचती, हाँ सिर्फ रेत जरुर भरी जा सकती।
ठीक यही बात जीवन पर लागू होती है यदि तुम छोटी- बातों के पीछे पड़े रहोगे और अपनी उर्जा और समय उसमे नष्ट करोगे तो जीवन की मुख्य बातों के लिए जगह नहीं रह जाती। मन के सुख के लिए क्या जरुरी है ये तुम्हे तय करना है।
धर्म-अध्यात्म में समय दो, परिवार के साथ वक़्त बिताओ, व्यसन मुक्त रहकर स्वास्थ्य पर ध्यान दो कहने का मतलब टेनिस की गेंदों की परवाह करो। बाकि सब तो रेत और कंकर हैं....
इसी बीच एक छात्र खड़ा हो बोला की सर लेकिन आपने ये नहीं बताया कि 'चाय के दो कप क्या हैं?'
प्रोफ़ेसर मुस्कुराये और बोले मैं सोच ही रहा था कि किसी ने अब तक ये प्रश्न क्यूँ नहीं पूछा.....इसका उत्तर ये है कि जीवन हमें कितना ही परिपूर्ण और संतुष्ट क्यूँ ना लगे लेकिन अपने खास मित्र के साथ दो कप चाय पीने की जगह हमेशा बचा कर रखना चाहिए.........
क्यूंकि आगे बढ़ने की चाह में करीबी रिश्तों को भुला देना समझदारी नहीं है...करीबी मित्र के साथ बिताये चंद लम्हों का सुख इस चराचर जगत का उत्तम आनंद है...इस आनंद के लिए वक़्त बचाए रखिये................

1 comment:

Chetan jain said...

BEHAD SARTHAK AUR UMNDA DARJE KA AALEKH HAI...KAHNE KO TO EK 6OTI SI KHANI LEKIN SUKHAD JINDGI JINE KA NUKSA SIKHANE KE LIYE KAFI HAI...