एक बड़ी प्रसिद्द पंक्ति है कि "अच्छे वक़्त कि एक बुरी बात होती है कि वो गुजर जाता है और बुरे वक़्त कि एक अच्छी बात होती है कि वो भी गुजर जाता है" अनुकूलता और प्रतिकूलता के ज्वारभाटे में स्थिरता कितनी है वह प्रशंसनीय होती है। उत्सव के लम्हों के अति उत्साह और निराशा के दौर में अति अवसाद से बचना जरुरी है क्योंकि दोनों ही लम्हों में अध्रुवता एक सामान है। ऐसे व्यक्तित्व को निर्मित करने का नाम ही 'स्थितप्रज्ञ' हो जाना है।
खैर ये लम्बा-चौड़ा दर्शन आपको पिलाने का मेरा उद्देश्य सिर्फ अपनी ब्लॉग पर वापसी कि सूचना आप तक पहुँचाना है। पिछले लगभग डेढ़ वर्ष से अनवरत संचालित पी टी एस टी संचार विगत लगभग दो माह से बिना किसी पोस्ट के वीरान पड़ा था। कारण बताना जरुरी नही क्योंकि ब्लॉग के नियमित पाठक इससे भलीभांति परिचित है। जिन्दगी के कठिन दौर से मुखातिब होकर और नए अनुभवों के साथ वापिस लौटा हूँ। दौर कठिन था पर सरलता से गुजर गया। समस्या अपने अंतस में समाधान लिए रहती है बस समस्या को समस्या न मानकर एक अध्यापक मानें क्योंकि जाते-जाते ये बहुत कुछ सिखा जाती है। वैसे भी समस्या उतनी बड़ी होती है जितना बड़ा हम उसे मानते हैं।
इस दरमियाँ मित्रों और परिजनों का सहयोग एवं साथ हृदयस्थल पे हमेशा अमिट रहेगा। टोडरमल स्मारक से प्राप्त ज्ञान कठिन वक्त में जहाँ अंतर को मजबूत बनाये हुए था तो स्मारक परिवार के गुरुजन और मित्रवर बाहर सहयोग एवं साथ प्रदान कर सुरक्षा कवच बनाये हुए थे। ऐसे में परेशानी आखिर कितना परेशान करती। अपने स्मारक का विद्यार्थी होने पर एक बार फिर गुरूर हुआ।
बहुत क्या कहूँ 'कम कहा ज्यादा समझना'...वैसे भी शुभेच्छाओं का कर्ज कभी नही चुकाया जा सकता। स्मारक परिवार से मिला साथ धन्यवाद का मोहताज भी नही है और धन्यवाद ज्ञापित करके में खुद कि लघुता भी प्रदर्शित करना नही चाहता।
खैर बातें बहुत है जो समयानुसार होंगी फ़िलहाल कुशलता की बात कहते हुए नयी शुरुआत के लिए तैयार हूँ।
-अंकुर'अंश'
हमारा स्मारक : एक परिचय
श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं।
विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें।
हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015
1 comment:
aapke lekh ke intjar h
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