हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Friday, April 16, 2010

शाकाहार नहीं है चांदी का वर्क!

चांदी के वर्क में लिपटी मिठाई कैंसर जैसी बीमारी का घर तो है ही, लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ भी है। जी हां, चांदी का यह वर्क पशुओं की आंतों के जरिए जिस तरह बनता है उससे यह शाकाहार तो कतई नहीं रहता। योगगुरु बाबा रामदेव ने इस तरीके से वर्क बनाने पर प्रतिबंध की मांग की है।    
                              चांदी का वर्क बनाने की प्रक्रिया की जानकारी दैनिक भास्कर ने जुटाई। इसमें जो तथ्य सामने आए, वह ऐसी मिठाइयों का सेवन करने वाले किसी भी व्यक्ति को झकझोर सकते हंै। दरअसल इसे पशुओं की ताजा आंत के अंदर रखकर कूट-कूट कर बनाया जाता है। दूसरी तरफ विभिन्न अध्ययन बताते हैं कि चांदी का वर्क मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है।
                                                               लखनऊ स्थित इंडियन इंस्ट्टियूट आफ टॉक्सिकोलॉजी रिसर्च (आईआईटीआर) के एक अध्ययन के मुताबिक बाजार में उपलब्ध चांदी के वर्क में निकल, लेड, क्रोमियम और कैडमियम पाया जाता है। वर्क के जरिए हमारे पेट में पहुंचकर ये कैंसर का कारण बन सकते हैं। 2005 में हुआ यह अध्ययन आज भी प्रासंगिक है क्योंकि वर्क बनाने की प्रक्रिया जस की तस है।
                                      शिमला के इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. राजेश कश्यप के अनुसार धातु चाहे किसी भी रूप में हो, सेहत के लिए काफी नुकसानदेह होती है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान लीवर, किडनी और गले को होता है। आईटीसी की मेटल एनालिसिस लेबोरेटरी के एन. गाजी अंसारी के अनुसार चांदी हजम नहीं होती। इससे पाचन प्रक्रिया पर प्रतिकूल असर तो पड़ता ही है, नर्वस सिस्टम भी प्रभावित हो सकता है।
                                                   आजकल बाजार में चांदी के नाम पर एल्यूमिनियम, गिलेट आदि के वर्क धड़ल्ले से बिक रहे हैं जो कही ज्यादा हानिकारक हंै। पुणो स्थित एनजीओ ब्यूटी विदाउट क्रुएलिटी (बीडब्ल्यूसी) के मुताबिक एक किलो चांदी का वर्क 12,500 पशुओं की आंतों के इस्तेमाल से तैयार होता है। एक अनुमान के मुताबिक देश में सालाना लगभग 30 टन चांदी के वर्क की खपत होती है। इसे बनाने का काम मुख्य रूप से कानपुर, जयपुर, अहमदाबाद, सूरत, इंदौर, रतलाम, पटना, भागलपुर, वाराणसी, गया और मुंबई में होता है।

ऐसे बनता है वर्क:
                                               चांदी के पतले-पतले टुकड़ों को पशुओं की आंत में लपेट कर एक के ऊपर एक (परत दर परत) रखा जाता है कि एक खोल बन जाए। फिर इस खोल को लकड़ी से धीरे-धीरे तब तक पीटा जाता है जब तक चांदी के पतले टुकड़े फैलकर महीन वर्क में न बदल जाएं। पशुओं की ताजा आंत मजबूत और मुलायम होने से जल्दी नहीं फटती है। इसी वजह से इसका उपयोग किया जाता है
बाबा रामदेव ने कहा- धार्मिक अशुद्धि का मामला
                                                                    योगगुरु बाबा रामदेव ने भास्कर से कहा कि चांदी का वर्क   बनाने के ऐसे कारखानों को तुरंत बंद करना चाहिए। यह धार्मिक अशुद्धि का मामला है। उन्होंने कहा  कि आयुर्वेदिक दवा के रूप में चांदी की भस्म का सेवन ठीक रहता है, वह भी निश्चित मात्रा में। दिगंबर जैन आचार्य विशुद्ध सागर जी का भी मानना है कि ऐसे वर्क से बनी मिठाई खाने योग्य नहीं होती। ऐसी मिठाइयों से बचना चाहिए।

ऐसी चीजो को जीवन में शामिल करना है या नही फैसला आपके हाँथ है

ये लेख हिंदी समाचार पत्र दैनिक भास्कर से लिया गया है

3 comments:

Sarvagya Bharill said...

waah!! maine bhi akhbaar main pada...bahut khoob! iske prachaar ki zaroorat hain

Chetan jain said...

bilkul tum is bare me kuch karo......

Sarvagya Bharill said...

sir main laga hua hoon..we are starting a new campaign for this