हमारा स्मारक : एक परिचय

श्री टोडरमल जैन सिद्धांत महाविद्यालय जैन धर्म के महान पंडित टोडरमल जी की स्मृति में संचालित एक प्रसिद्द जैन महाविद्यालय है। जिसकी स्थापना वर्ष-१९७७ में गुरुदेव श्री कानजी स्वामी की प्रेरणा और सेठ पूरनचंदजी के अथक प्रयासों से राजस्थान की राजधानी एवं टोडरमल जी की कर्मस्थली जयपुर में हुई थी। अब तक यहाँ से 36 बैच (लगभग 850 विद्यार्थी) अध्ययन करके निकल चुके हैं। यहाँ जैनदर्शन के अध्यापन के साथ-साथ स्नातक पर्यंत लौकिक शिक्षा की भी व्यवस्था है। आज हमारा ये विद्यालय देश ही नहीं बल्कि विदेश में भी जैन दर्शन के प्रचार-प्रसार में संलग्न हैं। हमारे स्मारक के विद्यार्थी आज बड़े-बड़े शासकीय एवं गैर-शासकीय पदों पर विराजमान हैं...और वहां रहकर भी तत्वप्रचार के कार्य में निरंतर संलग्न हैं। विशेष जानकारी के लिए एक बार अवश्य टोडरमल स्मारक का दौरा करें। हमारा पता- पंडित टोडरमल स्मारक भवन, a-4 बापूनगर, जयपुर (राज.) 302015

Friday, January 14, 2011

एक जान तो बची, उसे तो फर्क पड़ता है!!

मकर संक्रांति जयपुर वासियों ने बड़ी धूम-धाम से मनाई| मकर संक्रांति का त्यौहार जयपुर मे बड़ा महत्व रखता है, जिसमे बड़े-बूढ़े सब बड़-चड़कर भाग लेते हैं| शहर की चार दिवारी का माहौल देखते ही बनता है| बच्चे अपनी-अपनी पतंगे उड़ाते और पेच लड़ाते दिखते है और थोड़ी-थोड़ी देर में हर छत से वो काटा वो मारा की आवाज़ कानो में सुनाई देती रहती हैं| सड़क पर दौड़ रहे बच्चे उस दिन सबसे ज्यादा बिज़ी होते है, पतंग जो लूटना है| चाट, पकोड़ी, कचोड़ी, और चाय का भी लुत्फ़ भरपूर लिया जाता है| लाउड स्पीकर मे सारे लेटेस्ट गाने सुनाई देते है| कुछ लोग पूरे दिन हवा की दिशा निर्धारण करने मे लग जाते है| पतंग उड़ाने लायक हवा नहीं चले तो छत पर फ़ुटबाल, क्रिकेट का भी पूरा इंतज़ाम रहता है| इसी बीच कुछ सद्दे को मंझे मे बाँधने और उलझे धागे को सुलझाने के मैनेजमेंट मे भी लगे रहते है|

इन सबके बीच उस प्यारे, मासूम कबूतर का किसी को ध्यान नहीं रहता जो किसी बिल्डिंग के ऊपर वाली मंजिल के एक छोटे से कोने मे घायल हुआ बैठा है| उसे तो पता भी नहीं था की उसकी उड़ने की स्वतंत्रता मे एक तीखी धागे की डोर बाधा बनेगी जो उसकी गर्दन पर गहरा घाव छोड़ जाएगी जिसके बाद वह अपने बच्चो से शायद ही कभी मिल पाए, वह तो अपने बच्चो को दाना लाने के लिए चला था| यह चित्र तो ऐसा है जैसे बीच सड़क पर किसी आदमी का एक्सिडेंट हो गया हो, उसकी गर्दन से खून बह रहा हो और शहर के सारे लोग बिना ध्यान दिए अपनी मस्ती मे चले जा रहे हो| अनजान आदमी के बारे मे भी ऐसा सोचते ही हमारी रूह काँप जाती है, पर जब पक्षिओं की बात आती है तो हम कितने निर्दयी हो जाते हैं| हमे उस निर्दोष कबूतर की जान जान नहीं लगती पर आदमी की जान जान लगती है|

संक्रांति से पहले शहर के विब्भिन एनजीओ ने पतंग न उड़ाने की शहर वासिओ से अपील की| इस पर कुछ लोगों का सोचना होगा की एक दिन मे क्या फर्क पड़ता है? क्या हम त्यौहार भी न मनाये? उनका सोचना चाहिए की इसी एक दिन से सारा फर्क पड़ता है जब पक्षिओं के लिए चिकित्सा शिविर का आयोजन करना पड़ता है| त्यौहार खुशिया लाता है पर ऐसा त्यौहार किस काम का जो हज़ारों मासूमो की जान ले ले| यह दिन तो शोक के दिन मे परिवर्तित हो रहा है| किसी आतंकवादी हमले मे २०० लोग मरते है तो देश भर मे खलबली मच जाती है| पक्षियों के समुदाय मे इससे बड़ा हमला कभी नहीं हुआ होगा जब लाशो के अम्बार लग जाए| पर वे तो मूक है ना, अपनी आवाज़ नहीं उठा सकते| लोग माने या ना माने पर इन एनजीओ ने उनको आवाज़ दी है और उनके कार्यों से यदि एक जान भी बचती है तो सभी एनजीओ का कार्य सफल है| - सर्वज्ञ भारिल्ल

3 comments:

ANKUR JAIN said...

nice post dear........

Sarvagya Bharill said...

Thanku ji

Kumar @rpit said...

bahut hi shandaar lekh hai ise or josh k saath felane ka sankalp lete hai ..............