मकर संक्रांति जयपुर वासियों ने बड़ी धूम-धाम से मनाई| मकर संक्रांति का त्यौहार जयपुर मे बड़ा महत्व रखता है, जिसमे बड़े-बूढ़े सब बड़-चड़कर भाग लेते हैं| शहर की चार दिवारी का माहौल देखते ही बनता है| बच्चे अपनी-अपनी पतंगे उड़ाते और पेच लड़ाते दिखते है और थोड़ी-थोड़ी देर में हर छत से वो काटा वो मारा की आवाज़ कानो में सुनाई देती रहती हैं| सड़क पर दौड़ रहे बच्चे उस दिन सबसे ज्यादा बिज़ी होते है, पतंग जो लूटना है| चाट, पकोड़ी, कचोड़ी, और चाय का भी लुत्फ़ भरपूर लिया जाता है| लाउड स्पीकर मे सारे लेटेस्ट गाने सुनाई देते है| कुछ लोग पूरे दिन हवा की दिशा निर्धारण करने मे लग जाते है| पतंग उड़ाने लायक हवा नहीं चले तो छत पर फ़ुटबाल, क्रिकेट का भी पूरा इंतज़ाम रहता है| इसी बीच कुछ सद्दे को मंझे मे बाँधने और उलझे धागे को सुलझाने के मैनेजमेंट मे भी लगे रहते है|
इन सबके बीच उस प्यारे, मासूम कबूतर का किसी को ध्यान नहीं रहता जो किसी बिल्डिंग के ऊपर वाली मंजिल के एक छोटे से कोने मे घायल हुआ बैठा है| उसे तो पता भी नहीं था की उसकी उड़ने की स्वतंत्रता मे एक तीखी धागे की डोर बाधा बनेगी जो उसकी गर्दन पर गहरा घाव छोड़ जाएगी जिसके बाद वह अपने बच्चो से शायद ही कभी मिल पाए, वह तो अपने बच्चो को दाना लाने के लिए चला था| यह चित्र तो ऐसा है जैसे बीच सड़क पर किसी आदमी का एक्सिडेंट हो गया हो, उसकी गर्दन से खून बह रहा हो और शहर के सारे लोग बिना ध्यान दिए अपनी मस्ती मे चले जा रहे हो| अनजान आदमी के बारे मे भी ऐसा सोचते ही हमारी रूह काँप जाती है, पर जब पक्षिओं की बात आती है तो हम कितने निर्दयी हो जाते हैं| हमे उस निर्दोष कबूतर की जान जान नहीं लगती पर आदमी की जान जान लगती है|
संक्रांति से पहले शहर के विब्भिन एनजीओ ने पतंग न उड़ाने की शहर वासिओ से अपील की| इस पर कुछ लोगों का सोचना होगा की एक दिन मे क्या फर्क पड़ता है? क्या हम त्यौहार भी न मनाये? उनका सोचना चाहिए की इसी एक दिन से सारा फर्क पड़ता है जब पक्षिओं के लिए चिकित्सा शिविर का आयोजन करना पड़ता है| त्यौहार खुशिया लाता है पर ऐसा त्यौहार किस काम का जो हज़ारों मासूमो की जान ले ले| यह दिन तो शोक के दिन मे परिवर्तित हो रहा है| किसी आतंकवादी हमले मे २०० लोग मरते है तो देश भर मे खलबली मच जाती है| पक्षियों के समुदाय मे इससे बड़ा हमला कभी नहीं हुआ होगा जब लाशो के अम्बार लग जाए| पर वे तो मूक है ना, अपनी आवाज़ नहीं उठा सकते| लोग माने या ना माने पर इन एनजीओ ने उनको आवाज़ दी है और उनके कार्यों से यदि एक जान भी बचती है तो सभी एनजीओ का कार्य सफल है| - सर्वज्ञ भारिल्ल
3 comments:
nice post dear........
Thanku ji
bahut hi shandaar lekh hai ise or josh k saath felane ka sankalp lete hai ..............
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