इस श्रंख्ला का भाग एक , भाग दो , भाग तीन, भाग चार, भाग पांच और भाग छह पढ़कर ही इसमें प्रवेश करें-
(ये हमसब का व्यक्तिगत विवरण है..यूं तो इसकी टारगेट ऑडियंस सिर्फ हमारी क्लॉस के ही चुनिंदा शख्स हैं क्योंकि उन्हें ही मैं विशदता से जानता हूं और उनसे जुड़ी यादों को ही शेयर कर सकता हूँ फिर भी, कुछ और लोग भी इस संस्मरण से खुद को जुड़ा पा सकते हैं ये आपके area of interest पे निर्भर करता है।)
चलिये जनाब...ज़रा ठीक से बैठिये अपनी सीट पे..क्योंकि तेजी से हम इन 2013 के दरख्तों को पीछे छोड़के ग्यारह वर्ष पीछे जा रहे हैं। इसलिये गाड़ी की रफ्तार ज़रा तेज रहेगी। अरे ओ निपुण ये आशीष मौ को समझा ज्यादा बब्बर न मचाए..और ये अमित जी से कहो पानी ज़रा बाद में छान लेना। अरे हाँ अंकित, बेटा फैशन दिखाने के लिये काफी वक्त पड़ा है..और ज्यादा ही फैशन दिखाया तो फिर मुझे वो गीत गाना पड़ेगा.."लगी चोट गिरे हीरोजी..गॉगल सिर पे पड़ी रही..बस परदेशी हुए रवाना प्यारी काया पड़ी रही।"
खैर, ज़रा उस वक्त का राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय और सामाजिक माहौल का भी ज़रा परिचय पा लेते हैं..जो इस यात्रा की पृष्ठभुमि में जिंदा रहेगा। 2002। हाल ही में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम देश के राष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं..अमेरिका 9/11 के आतंकी हमले से उबरने की कोशिश में लगा है और भारत अभी भी भुज के भुकंप की कड़वी यादें सीने में संजोये हैं..कुछ महीनो बाद ही अहमदाबाद के अक्षर धाम पे हमले से देश फिर थर्रा उठता है। सिनेमाघरों में शाहरुख की देवदास धूम मचा रही है। इंडियन क्रिकेट टीम नेटवेस्ट ट्राफी की जीत के जश्न में मशगूल है और इंग्लैंड से टेस्ट में दो-दो हाथ कर रही है..गांगुली चमत्कारी कप्तान बने हुए हैं। देश की विकासदर अपने उच्च स्तर पर बरकरार है। संसद में कुछ दिनों पूर्व ही सूचना का अधिकार अधिनियम पारित हुआ है..और इन सब घटनाओं से बेखबर पीटीएसटी का बैच नं 26, देश के घटनाक्रम से परे जयपुर के बापूनगर स्थित टोडरमल स्मारक में दस्तक देता है।
मैं जब पहुंचा तब टोडरमल स्मारक के इस प्रांगण में कुंदकुंद कहान के तत्वाधान में शिविर क्रमांक 25 संचालित था। भारी भीड़ थी..माहौल गुलज़ार था। लेकिन इस गुलज़ार माहौल की गुलजारी मुझसे कोसों दूर थी। मेरे लिये अपने घर-परिवार से दूर इस माहौल में रहना..कालेपानी की सजा के मार्फत थी। कुछ जान-पहचान के सीनियर मुझे इस माहौल की महिमा का ज्ञान करा रहे थे..लेकिन अपनी नाक में कीचड़ भरे हुए भंवरे को कहाँ भला फूलों की सुगंध आती है..ऐसी ही हालत मेरी थी। प्रायः इस माहौल से पलायन करने की तैयारी हो चुकी थी और तभी पहले धर्मेंद्रजी भाईसाहब की पढ़ाई गई पट्टी और फिर अमित जी की इस माहौल को लेके ललचाई हुई चुस्की ने मेरी विचारधारा पे कुठाराघात किया...और बंदा शास्त्री बनने की होड़ में शामिल हो गया।
अरे..अरे राहुल, सोनल, सतीश जम्हाई मत लो यार। थोड़ा सा तो खुद का इंट्रोडक्शन देने दो भला..तभी तो इस ट्रेन को सही ढंग से दौड़ा सकूंगा। शिविर की गुलजारगी ख़त्म और मम्मी-मामा का भी उस परिसर से पलायन हो चुका था..अब मेरा परिवार बस यही 35-36 नमूने थे जो अब भी इस सफर में अपनी-अपनी सीटों से चिपके हुए बैठे हैं। अरे ओ सचिन चश्मा लगाले बेटा! नई तो तेरे करेंट के निशान से बगल में बैठा अतुल डर जायेगा। सॉरी भाई वर्तमान में आने के लिये..वापस वहीं लौटते हैं। अरे ये सामने से हट्टे-कट्टे डील-डोल वाला कौन चला आ रहा है..और उसके बगल में ये दो महारथी कौन हैं...ओह मुंबई निवासी जीतू..और अनुज एंड अनुप्रेक्षा। बड़े ग्लैमरस् अंदाज थे आपके भी..बट भाई मुझे ऐसे क्यों देख रहे हो? पता है आउटडेटेड कुर्ता पहने हुए हूं...अब भाई हमरे गांव में तो जोई आ मिलत हैं। सीख जाउंगा तुमसे तुम्हारा स्टेंडर भी पर मुझे अपनाओ तो। अरे ये क्या आगे बढ़ गये जनाब।
खैर, कोई बात नहीं। ओह् निखिल फाइनली यू इंटर इन द सीनेरियो। बड़ी अजीब सी शक्लो-सूरत है तुम्हारी समझ नहीं आता कि इसे देख तुम्हें मासूम समझा जाये या नटखट..और कई लोग अपने हाथ जला बैठे है तुम्हे् मासूम समझने की गलती कर..लेकिन सच बताऊं तुमसे दोस्ती करने का बड़ा क्रेज था मुझमें एंड थैंक्स कि अमित जी के अलावा किसी और ने भी मुझे अपने परिवेश में आने का मौका दिया। पर ये क्या ये कमबख्त निपुण को क्यों साथ ले आये..मुझे तो डर लगता है इससे। बात-बात में छाती पे लात धरने की बात करता है..पता नहीं कभी किसी की छाती पे उंगली भी रखी है या नहीं..या फिर यूंही अपनी शेखी बघारता रहता है..पर ठीक है अब ये तुम्हारा दोस्त है तो मैं भी इसे अपना दोस्त बना लेता हूँ। कालांतर में अंकित मुंदे की निपुण से घनिष्ठता के बारे में भी पता चला..जब जनाब! गांधी मोड़ पे किसी पेड़ के नीचे फुटपाथ पे स्थित किसी नाई से अपने बाल कटवा रहे थे।
और ये एसटीडी के पास खड़े होके कौन रो रहा है..ओह् मिस्टर सतीश क्या हुआ घर की याद आ रही है? मुझे भी आ रही है यार पर कोई अपना नहीं है यहाँ जिसके सामने रो सकूं..इसलिये तकिये के नीचे ही अपनी भड़ास निकाल लेता हूँ। खैर, कोई बात नहीं थोड़े दिन बाद सब ठीक हो जाएगा। चलो-चलो संस्कृत की क्लास का टाइम हो गया...पर तुम लोग ही जाओ वहाँ। मैं तो चला निखिल-निपुण के साथ स्मारक की बख्खैया उधड़ने-जनता मार्केट..और लौटते वक्त वही रटा-रटाया वाक्य मार देंगे- 'लो फिर आ गये जैल में'।
अरे ये दो हंसों का जोड़ा कहाँ से चला आ रहा है..और उन हंसो के बीच में ये चश्मा लगाये बगुला कौन है। ओके सन्मति-विवेक और बीच में रविजी। भैय्या यार! ज़रा अपनी इस तिकड़ी से बाहर नज़र निकल के भी देख लिया करो..तुम्हारी क्लास में और भी 30-35 लोग हैं। ये सन्मति महाशय तो भाई कमाल की हस्ती थे..शुरुआती वक्त में आपने स्टारडम के खूब मजे लूटे..अच्छे गवैय्या जो थे। और लल्लू महान् आपकी ढोलक की थाप को भला कैसे भूल सकते हैं। मुझे याद है आपकी इसी तिकड़ी ने चिन्मय जी के साथ मिलके..अखिल भारतीय जैन युवा फैडरेशन द्वारा कराई गई संगीत प्रतियोगिता में श्रेष्ठता का पुरुस्कार प्राप्त किया था। आपके घरों में उस पुरुस्कार स्वरूप मिली शील्ड संभवतः अब भी दीमक खा रही होगी।
चलो क्रिकेट-व्रिकेट हो जाये यार..लेकिन भैय्ये फ्री में ग्राउंड कहाँ मिलने वाला है इस रेतीले राजस्थान की सरजमीं पे। खैर, रेत पे ही अपने वल्लम गाड़ेंगे..गाँधी नगर का एसबीबीजे बैंक के पास वाला ग्राउंड है न। मनो जो निपुण काय इत्तो होशियार बन रओ है..लगत है जोई दादा है टीम बनावे वारो। हे भगवान्! ये निपुण महान् मुझे भी अपनी टीम में शामिल कर ले तो मजा आ जाएगा..इसलिये निपुण से दोस्ती बनाये रखनी चाहिए। मगर इन अभ्यास मैचों में अपन ने भी अपनी बल्लेबाजी का जमकर लोहा दिखाया..लोग तो अपने आप इंप्रेस हो गये। बाद में पता चला कि मैच तो कार्क बॉल से होते हैं और उस बॉल के सामने अपनी सिट्टी-पिट्टी गोल हो गई। लेकिन ये कमाल का मैराथन कौन है यार..लगातार चार बॉलो पे चार चौके एंड अगली पे सिक्स। ओह् रोहन..यू आर। आगे जाके यही तो हमारी टीम के सबसे छोटी कक्षा में स्मारक कप जिताने वाले शिल्पकार बने थे..यू आर सच अ ग्रेट क्रिकेटर। यदि थोड़े पैसे-वैसे लगाके किसी क्लब को ज्वाइन किया होता तो कम से कम रणजी तो खेल के आते ही बेटा तुम। पर इतनी खड़ूस प्रवृत्ति के शख्स क्यों हो तुम और ये निपुण द्वारा रोटे बोलने पे चिड़ क्यों जाते हो..आखिर सरनेम ही तो है तुम्हारा। और जब भी कोई एमपी वाला तुम्हारे रूम में घुस जाता है तो उसे ऐसे क्यों देखते हो जैसे कि कोई भंगी घुस आया हो..इट्स नॉट गुड डियर। खैर तुम्हारी माया तुम ही जानो। वैसे निपुण महाशय क्रिकेट के पटल से बाहर हो गये..अपने दादागिरि वाले स्वभाव के चलते...काय भैय्या सबने मिलके तुमरी छाती पे ही लात धर दई जा तो।
अरे-अरे जो का...पुरानी बात सुनके लड़न काय लगे..ठीक से बैठो भाई...कुछ अच्छे लम्हे, और सुहावने स्टेशन भी तुम्हारी प्रतिक्षा में है....ए..पेंट्री कोच वाले गोपाल-केदार..कौन है इते? ज़रा, निपुण को ठंडा देना तो भला.....
ज़ारी..........
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